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________________ च० छ० इसिणो, इसिस इसिदो, इसि प० प० वी० สว च० प० इसीण, इसी इसितो, इसीओ, इसीउ, इसी हितो इसी संतो स० इसिस, इसिम्मि इसी, इसी इसी प्रकार अग्गि, मुणि, बोहि, रासि, गिरि, रवि, कवि, निहि, विहि आदि शब्दों के रूप इसी शब्द के ही समान होते हैं । छ स० प० वी० प्रभिनव प्राकृत व्याकरण शौरसेनी में भाणु भानु शब्द के रूप K एकवचन भाणू भाणुं भागुणा भाणुणो, भाणुस भादो, भा भागुणो, भागुस्स भासि, भांणुम्मि एकवचन म् एकवचन कुलं कुलं बहुवचन भो, भावो भाणओ भाण, भा भाणू, भाि भाणूण, भाणूर्ण भाणुत्तो, भाणूओ भाणू, भाणू हितो भाणूसंतो भाणूण, भापूर्ण भाणूसु, भाणू नपुंसकलिङ्ग प० वी० "" "" शेष पुल्लिङ्ग के समान प्रत्यय होते हैं । बहुवचन णि-पूर्व स्वर को दोघं शौरसेनी में कुल शब्द के रूप ३८६ बहुवचन कुलाणि - कुष्ठाणि "" शेष रूप वीर शब्द के समान होते हैं । सर्वनाम शब्दों के रूपों में पञ्चमी एकवचन में आदो और आदु प्रत्यय जोड़कर रूप बनते हैं। यथा सव्वादो, सव्वादु, इमादो, इमादु; कादो, कादु, जावो, जादु आदि रूप बनते हैं । सप्तभी एक वचन में सव्वसित्वा सर्वस्मिन् इदरसित्वा हैं । एतद् (एअ) शब्द के रूपों में विशेषता है। इतरस्मिन् आदि रूप बनते "
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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