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________________ ३७६ वेल्ल वेह अभिनव प्रांकृत-व्याकरण Vवेष्ट लपेटना Vवेल्ल , रम् कांपना, लेटना; क्रीडा करना व्यध् वीधना गम् चलना, गति करना Vआ + क्रम् आक्रमण करना व्युत् + Vसज् परित्याग करना, छोड़ना बोल वोल्ल वोसर सअ संक संकल संकेअ संखा संखुड्ड संगह स्वद् शङक् सं+ कलय् सं+ Vतय सं+ स्त्यैि रम् सं+ग्रह: संगै कथ सं+ शक सं+ स्था सं + क्षिप् संगा संघ संचाय चखना, स्वाद लेना, प्रीति करना संशय करना, सन्देह करना संकलन करना, जोड़ना इशारा करना आवाज करना,सान्द्र होना,निबिड बनना क्रीड़ा करना, संभोग करना संचय करना, संग्रह करना गान करना कहना समर्थ होना रहना, ठहरना एकत्र करना, इकट्ठा करना तैयार करना ख्याल करना, चिन्तन करना सन्ध्या की तरह आचरण करना कवच धारण करना, बसतर पहनना झरना, टपकना अवलम्बन करना, सहारा देना अनुसन्धान करना, खोजना, जोड़ना प्राप्त करना संचिक्ख संछह संजत्त संझा सं + vध्ये, सन्ध्याय संणज्झ सं+नह स्यन्दू संद संदाण संध काटना संपाव संलंच संवर संविज संवेल्ल' सं+Vधा संप्र + आप सं + Vलुञ्च सं +va .... सं+ विद् दे०...-- -- - निरोध करना, रोकना . विद्यमान होना सकेलना, समेटना, संकुचित करना
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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