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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण स्वर सन्धि प्राकृत में प्रधानतः चार प्रकार की स्वर सन्धियाँ पायी जाती हैं - दीर्घ, गुण, हस्वदीर्घं और प्रकृतिभाव या सन्धि-निषेध | वृद्धि सन्धि के भी विकृत रूप मिलते हैं । 9 (१) दीर्घ सन्धि - हस्व या दीर्घ अ, इ और उ से उनका स्व-सवर्ण स्वर परे रहे तो दोनों के स्थान में सवर्ण दीर्घ होता है । उदाहरण- क अ + अ = आ-दंड + अहीसो = दंडाहीसो, दंड अहीसो (दंडाधीश:) अ + आ = आ–विसम + आयवो = विसमायवो, विसम आयवो (विषमातदः) आ + अ = आरमा + अहीणो=रमाहीणो, रमा अहीणो ( रमाधीन :) आ + आ = आ-रमा + आरामो = रमारामो, रमा आरामो (रमारामः) ण + अल्लिअइ = णाल्लिअइ ण + आगअ = णागअ ( नागत: ) ण + आलवइ = णालवइ ( नालयति ) न + अभिजाणइ = नाभिजाणइ ( नाभिजानाति ) न + अइदूर = नाइदूर ( नातिदूरम् ) ण + अलंकिदा = णालंकिदा ( नालंकृता ) धम्मकहा + अवसान = धम्मकहावसान ( धर्मकथावसानम् ) महा + आक्खंद = महाक्खंद, महाआक्खंद ( महाकुन्दः ) बहु + उदग = बहूद्ग, बहुउद्ग ( बहूदकम् ) कअ + अवराह = कआवराह ( कृतापराध: ) आरक्ख + अधिकते = आरक्खाधिकते ( आरक्षाधिकृताम् ) जेण + अहं = जेणाहं ( येनाहं ) महाराअ + अधिराओ = महाराआधिराओ ( महाराजाधिराजः ) इह + अडवीए = इहाडवीए ( इहाव्याम् ) सहस्स + अतिरेक = सहस्सातिरेक ( सहस्रातिरेक: ) इंगिय + आगार = इंगियागार ( इंगिताकार : ) किलेस + अणल = किलेसाणल ( क्लेशानल: ) दूदिअल + अवमाण - दूदि लावमाण ( द्यूतकरावमानम् ) = अद्द + अवरा = अहावरा ( अथापरा ) सांस + अणल = सासाणल ( श्वासानलः ) १. समानानां तेन दीर्घः १ २ ।१ हे० । 4
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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