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________________ २६२ अप्प (अल्प ) बहु पावी (पापी) गुरु जेह (ज्येष्ठ) विडल ( विपुल) पडु (43) घणी (धनी) महा वुड्ढ (वृद्ध) थूल (स्थूल) बहुल दीहर (दीर्घ) अंतिम (अन्तिम) दूर पाचअ ( पाचक ) विउस ( विद्वान् ) मिउ (मृदु ) धम्मी (धर्मी) खुद्द (क्षुद्र ) M इम ( मतिमान् ) अभिनव प्राकृत व्याकरण कणीस ( कनीयस) भूयस (भूयस् ) पायस (पापीयस् ) यस ( गरीयस् ) जेट्ठयर (ज्येष्ठतर) विउलअर महत्तर जायस (ज्यायस् ) थूलअर (स्थूलतर) पडीअस, पडुअर (पटीयस) पडिट्ठ, पहुअम ( पटुतम ) धणिअर धणिअम अस (बंही अस्) दोहरअस (दीर्घतर) नेदीअस (नेदीयस् ) दवीअस (दवयस् ) पाचअर (पाचकतर ) विउसअर (विद्वत्तर) मिउअर (मृदुतर) धम्मीअस ( धर्मीयस) खुद्दअर (क्षुद्रतर) कणिट्ट, कणिट्ठग (कनिष्ठ) (भूष्ठि) पावि ( पापिष्ठ) (तीस) गरि ( गरिष्ठ) जेम (ज्येष्ठतम ) विलअम (विपुलतम महत्तम जेड (ज्येष्ठ) थूलअम (स्थूलतम ) बंदि (हिट ) दीहरअम (दीर्घतम ) दिट्ठ (नेदिष्ठ ) aag ( दविष्ठ ) पाचअअम (पाचकतम) विसअम (विद्वत्तम) मिडअम (मृदुतम) धम्मिट्ठ ( धर्मिष्ठ ) खुद्द अम (क्षुद्रतम ) मट्ठ (मतिष्ठ)
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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