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________________ प्रस्तावना प्राकृत का अनुशासन वर्णित है। इसमें कुल १७ सूत्र हैं। बारहवां परिच्छेद शौरसेनी प्राकृत के नियमन का है। इसमें ३२ सूत्र हैं और इनमें शौरसेनी प्राकृत को विशेषताएँ वर्णित हैं। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर अवगत हाता है कि वररुचि ने चण्ड का अनुसरण किया है। चण्ड द्वारा निरूपित विषयों का विस्तार अवश्य इस ग्रन्ध में पाया जाता है। अतः शैली और विषय विस्तार के लिये वररुचि पर चएड का ऋण मान लेना अनुचित नहीं कहा जायगा। इस सत्य से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि भाषा ज्ञान की दृष्टि से वररुचि का प्राकत प्रकाश बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। संस्कत भाषा की ध्वनियों में किस प्रकार के ध्वनि-परिवर्तन होने से प्राकृत भाषा के शब्दरूप गठित हैं, इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया गया है। उपयोगिता की दृष्टि से यह ग्रन्थ प्राकत अश्वेताओं के लिये ग्राह्य है। सिद्धहेम शब्दानुशासन - इस व्याकरण में सात अध्याय संस्कृत शब्दानुशासन पर हैं और आठ अध्याय में प्राकृत भाषा का अनुशासन लिखा गया है। यह प्राकृत व्याकरण उपलब्ध समस्त प्राकृत व्याकरणों में सबसे अधिक पूर्ण और व्यवस्थित है । इसके ४ पाद हैं । प्रथम पाद में २७१ सून हैं। इनमें सन्धि, व्यञ्जनान्त शब्द, अनुस्वार, लिङ्ग, विसर्ग, स्वर-व्यत्यय और व्यञ्जन-व्यत्यय का विवेचन किया गया है। द्वितीय पाद के २१८ सूत्रों में संयुक्त व्यञ्जनों के परिवर्तन, समीकरण, स्वरभक्ति, वर्णविपर्यय, शब्दादेश, तद्धित, निपात और अव्ययों का निरूपण है। तृतीय पाद में १८२ सूत्र हैं, जिनमें कारक विभक्तियों तथा क्रियारचनासम्बन्धी नियमों का कथन किया गया है। चौथे पाद में ४४८ सूत्र हैं। आरम्भ के २६९ सूत्रों में धात्वादेश और आगे क्रमशः शौरसेनी, मागधी, पैशाची. चूलिका पैशाची और अपभ्रंश भाषाओं को विशेष प्रवृत्तियों का निरूपण किया गया है । अन्तिम दो सूत्रों में यह भी बतलाया गया है कि प्राकत में उक्त लक्षणों का व्यत्यय भी पाया जाता है तथा जो बात यहां नहीं बतलायी हैं, उसे संस्कृतवत् सिद्ध समझना चाहिए। सूत्रों के अतिरिक्त वृत्ति भी स्वयं हेम की लिखी है। इस वृक्ति में सूत्र गत लक्षणों को बड़ी विशदता से उदाहरण देकर समझाया गया है। ___ आचार्य हेम ने प्राकृत शब्दों का अनुशासन संस्कृत शब्दों के रूपों को आदर्श मानकर किया है। हेम के मत से प्राक्त शब्द तीन प्रकार के हैं—तत्सम, तद्भव और देशी। तत्सम और देशी शब्दों को छोड़ शेष तद्भव शब्दों का अनुशासन इस ध्याकरण द्वारा किया गया है। ____ आचार्य हेम ने 'आर्षम्' ८१११३ सूत्र में आर्ष प्राकृत का नामोल्लेख किया है और बतलाया है कि 'आषं प्राकृतं बहुलं भवति, तदपि यथास्थानं दर्शयिष्यामः ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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