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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण अतिरिक्त अव्यय निपात तद्धितों और कृत्प्रत्ययों के संयोग से भी कुछ अव्यय बनते हैं । तथा इआणि, आणि ( इदानीम् ), इअहरा ( इतरथा ), एहि, एत्ता ( इदानीम् ) कहि (कुत्र), कुओ कुदो (कुत:), जत्थ (यत्र), जहा, जहा, जहि (यथा ), सव्वाओ, ( सर्वतः ); सहासउत्तो (सहस्रकृत्वः), एकहा आदि अव्यय के समान ही प्रयुक्त होते हैं । प्राकृत में निपात का महत्त्वपूर्ण स्थान है । जो पद व्याकरण के नियमों के विपरीत सिद्ध होते हैं, वे निपातन से सिद्ध माने जाते हैं । जनभाषा होने से प्राकृत में ऐसे सहस्रों शब्द हैं, जिनकी व्युत्पत्तियां सिद्ध नहीं की जा सकती हैं । ऐसे शब्द निपातन से सिद्ध माने जाते हैं । जितने देशी शब्द हैं, वे प्राय: निपातन से सिद्ध माने गये हैं । अझहरो - रहस्यभेदी अक्कंतो- वृद्धः अग्गिआयो - इन्द्रगोप: अंकिअं - आलिङ्गितम् अच्छिवि अच्छी- परस्पराधिः अच्छुद्धसिरी - मनोरथाधिकफलप्राप्तिः अजमो— ऋजुः अड्डअणा - पुंश्चली अणरहू - नववधूः अणुझिअओ - प्रयतः परिजागरित: अणुसूआ - आसन्नप्रसवा अण्गइओ - सर्वार्थतृप्तः अत्तिहरी — दूती - अन्तरिज्जं - रशना, कटिशूलम् अपिट्टं - पुनरुकृतम् अपुणं पूर्णम् - अ अमओ-असुर : अम्हत्तो—प्रमृष्टः अकोप्पो - अपराधः अग्गहिओ - विरचितः विप्रगृहीतः अग्गुच्छं - प्रतीतम् अच्छिवडणं - निमीलनम् अच्छिहरूहो— वेण्यः अजडो - जारः अट्टणो — आर्तज्ञः अणडो - जार: अणहवणअं - भर्सितम् अणुदिवं - दिनमुखम् अण्णं - आरोपितम्, खण्डितम् अण्णासअं - आस्तृतम् २२१ अथकं - अकाण्डम् अपंडिअं— अनष्टम् अपुण्णं - आक्रान्तम् अबुद्धसिरी - मनोरथाधिकफलप्राप्तिः अम्मच्छं - असंबद्धम् अयुजरेas - अचिरयुवति:
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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