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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण १५५ आदेश भी होता है । डित् से यहाँ यह तात्पर्य है कि अन्त के इकार और उकार का लोप हो जाता है । १ ( १७ ) इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों से पर में आनेवाले शस और डस् के स्थान में विकल्प से णो आदेश होता है । २ ( १८ ) इकारान्त और उकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले टा - तृतीया एकवचन के स्थान में 'णा' आदेश होता है। ३ ( १९ ) उकारान्त चउ < चतुर् शब्द से पर में आनेवाले भिस्, भ्यस् और सुप् विभक्ति को विकल्प से दीर्घ होता है ।" ४ ( २० ) हेम के मत में इकारान्त और उकारान्त शब्दों में ङसि और ङस् के के परे रहने में विकल्प से णो आदेश होता है ।" ( २१ ) शेष रूपों की सिद्धि अकारान्त पुल्लिंग शब्दों के समान ही होती है । इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के विभक्तिचिह्न एकवचन पढ़मा — प्रत्यय लुक्, दीर्घ बीआ तइया -णा उत्थी - णो, स पंचमी - णो, तो, ओ, उ, घट्टी - णो, स्स सत्तमी - मि, सि - " संबोहण - ई, प्रत्ययलुक् -- " एकवचन व-हरी बी० - हरिं -CP हिंतो - हरिणा च० - हरिणो, हरिस्स पं - हरिणों, हरितो, हरीओ, हरी, हरीहितो बहुवचन अउ, अओ, णो, ई oit, & हि, हिँ, हिं ण, Οι तो, ओ, उ, हिंतो, सुंतों ण णं सु, सु अउ, अओ, गो, ई इकारान्त हरि शब्द के रूप बहुबचन हरउ, हरओ, हरिणो, हरी हरिणो, हरी हरीहि, हरीहि, हरीक्षि हरीण, हरीणं हरितो, हरीओ, हरीउ, हरीहितो हरीसंतो १. पुंसि जसो डउ डग्रो वा ८।३।२० हे० । २. ङसो वा ५। १५ वर० । ३. टोणा ८ । ३ । २४ हे० । ४. चतुरो वा ८।३।१७ हे० । ५. ङसि - ङसो: पुं-क्लीबे वा ८।३।२३ हे ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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