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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण संजा, संणा संज्ञा--व्यञ्जन से परे रहने के कारण ज्ञ को ज, विकल्पाभाव में हैं। ( १८ ) संस्कृत का संयुक्त वर्ण है प्राकृत में रिह हो जाता है। अरिहइ ८ अर्हति--अर्ह के स्थान पर रिह, त का लोप और इ शेष । अरिहोद अर्ह:गरिहार गहरे-- वरिहो वहः-- (५९) संस्कृत के संयुक्त ब्यञ्जन र्श और र्ष के स्थान पर प्राकृत में रिस होता है। ( क ) श = रिस आयरिसो आदर्श:---र्श के स्थान पर रिस हुआ है। दरिसणं< दर्शनम्- , सुदरिसणंसुदर्शनम् , ( ख ) ष = रिस वरिसंवर्षम् -र्ष के स्थान पर रिस हुआ है। वरिससयं वर्षशतम्-, परिसा < वर्षा( ६० ) संकृत के संयुक्त ल के स्थान पर प्राकृत में इल होता है । अंबिलं ( अम्लम्-संयुक्त ल के स्थान पर इल हुआ है, म के स्थान पर पूर्व स्वर पर अनुस्वार के साथ ब हुआ है। किलम्मइ ५ क्लाम्यति --संयुक्त ल के स्थान पर इल, म्य को म्म, विभक्ति इ । किलंतं<क्लाम्यत्-संयुक्त ल को इल । किलिटुं<क्लिष्टम्किलिन्नं< क्लिन्नम्किलेसोर क्लेश:गिलाइ<ग्लायतिगिलाणंग्लानम्पिलुटुं< प्लुटम्पिलोसोरप्लोषःमिलाइ<म्लायति मिलाणं म्लानम्सिलेसोर श्लेष:
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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