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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण १०५ तुम्हारिसो<युष्मादृशः-युष्मा के स्थान पर तुम्हा, दकार का लोप, शेष स्वर र को रि, तालव्य श को दन्त्य स। तुम्हारिच्छो युष्मादृशः- , ,क्ष को च्छ, विसर्ग को ओत्व । तुम्हारि-युष्मादृक्- , अन्त्य हलन्त्य क् का लोप । सरिसो< सदृश:-दकार का लोप, शेष स्वर २ को रि, तालव्य श को दन्त्य स विसर्ग का ओत्व । सरिच्छो< सदृक्षः- , क्ष को च्छ, विसर्ग को ओत्व । सरि< सदृक्- , अन्त्य हलन्त्य क् का लोप । रिज्जू, उज्जूर ऋजु:-ऋ के स्थान में विकल्प से रि, विकल्पाभाव में उ । रिणं, अणं< ऋणम्- , , विकल्पाभाव में अ । रिऊ, उऊ <ऋतु:- , , तकार का लोप, शेष स्वर उ को दीर्घ । रिसहो, उसहो<ऋषभः-, , विकल्पाभाव पक्ष में उ। रिसी, इसी<ऋषि:- , , विकल्पाभाव पक्ष में है। (८) प्राकृत में संस्कृत की एकार ध्वनि इ और ऊ में बदल जाती है । ( क ) ए = इकिसर, केसरं< केसरम्-ककारोत्तर एकार को विकल्प से इत्व । चविडा, चवेडाद चपेटा-प को व, पकारोत्तर ए को विकल्प से इ। दिअरो, देयरो< देवर:-दकारोत्तर एकार को इत्व, वकार का लोप और अ स्वर शेष । विअणा, वेअणा-वेदना- वकारोत्तर एकार को इत्व, इकार का लोप और अ स्वर शेष । (ख)ए = ऊ थूगो, थेगो< स्तेन:-स्त के स्थान पर थ और एकार के स्थान पर विकल्प से ऊकार । (९) प्राकृत में संस्कृत की ऐकार ध्वनि का अ अ, इ, ई, अइ और ए में परिवर्तन होता है। (क) ऐ=अ। उच्चअं< उच्चैस्-चकारोत्तर ऐकार के स्थान पर अअ । नीचअं< नीचैस - .. ,
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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