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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण १०१ माइमंडलं, माउमंडलं < मातृमण्डलम् - तकारोत्तर अकार को विकल्प से इत्व | मिच्चू, मच्चू<मृत्युः— मकारोत्तर ऋकार को विकल्प से इत्व और त्यु: को च्चू | विद्धो, वुड्ढो वृद्धः - कारोत्तर ऋकार को विकल्प से इस्त्र । विंट, वेंट वृन्तम्-वकारोत्तर ऋकार को विकल्प से इस्व तथा त कोट । K सिंगं, संगं शृङ्गम् - तालव्य श को दन्त्य स, शकारोतर ऋकार को विकल्प से (घ) ऋ = उ — निम्न प्राकृत शब्दों में संस्कृत की ऋ ध्वनि उकार में परिवर्तित है । उऊऋतु: - ऋकार को उ तथा तकार का लोप और शेष स्वर उ को दीर्घं । उसहों ऋषभः - ऋ को उत्व, मूर्धन्य ष को दन्त्य स भ को को ओत्व । ६, विसर्ग - जामाउओ जामातृकः – तकारोत्तर ऋकार को उत्व, तकार का लोप, क लोप, अ स्वर ओर विसर्ग को ओत्व । नतुओ नप्तृकः संयुक्त प का लोप, त को द्वित्व, ऋकार को उत्व, क का लोप और शेष स्वर अ को ओत्व । निहुअं अ स्वर शेष । निउअं < निवृतम् — वकारोत्तर ऋकार को उत्व, व का लोप, तकार का लोप और और अ स्वर शेष 1 < निभृतम्भकार को ह तथा ऋ को उत्व, तकार का लोप और निव्वुअं निवृतम् — संयुक्त रेफ का लोप, व द्वित्व, ऋकार को उत्व, त लोप और अ स्वर शेष 1 निव्वुई < निर्वृप्ति :- संयुक्त रेफ का लोप, व को द्वित्व, ऋकार को उत्व, त लोप और इकार शेष तथा इसको दीर्घ । परहुओ परभृतः - भकारोत्तर ऋकार को उत्व, भ को छ, त लोप और अ स्वर शेष, विसर्ग को ओव | परामुट्ठो परामृष्टः - मकारोत्तर ऋकार को उत्त्र, संयुक्त ज का लोप, ट को द्वित्व, द्वितीयट को ठ, विसर्ग को ओस्व । पिउओ पितृकः - तकारोत्तर ऋकार को उत्व, क का लोप अ स्वर शेष और विसर्ग का ओत्व | पुहई < पृथिवी - पकारोत्तर ऋकार को जल्न, थ के स्थान पर ह, इ स्वर को अ, वकार का लोप और ई स्वर । पहुडि प्रभृति संयुक्त रेफ का लोप, भकारोत्तर ऋकार को उत्व, त को ड । chys
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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