SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 94 ) हम लोगों के पास पुनः आये और सामाज तथा खानी दर्शनानन्द जी सरस्वती के विलाप तथा हृदय द्रावक वालों और प्राग्रहों का (जिनके कि.कारणा उनका चित्त उस दिवश उनके अत्यन्त प्रिय वन्धु श्राममाज के सुप्र सिद्ध विद्वान् पंडित गगापति जो शर्म के काल मृत्यु का समाचार सुनने से परम शोकाकुल होनेसे पिघल गया था और बहुत दबाव पड़ने पर उन्हें " जैन धर्म परित्याग" शीर्षक विज्ञापन निकालना ही पड़ा था ) वर्णन क रते हुये अपनी भूनपर बड़ा पश्चाताप प्रगट किया और कहा कि मुझे आ समाजपर विल्कुल श्रद्धा नहीं है और मैं एक मात्र जैनधर्मको ही श्रात्मा का कल्याण करने वाला समझ कर उसको पुनः ग्रहण करता हूं। ऐसा कहकर उन्होंने इन लोगों को व्यर्थ ही बहुत मजबूरी से ऊपरे मन बदनाम क रनेके अर्थ बहुत क्षमा प्रार्थना चाही और निम्र विज्ञापन अपने हाथ से लिखकर प्रकाशित करनेको दिया । वन्देजिनवरम् । विज्ञापनं । मैं अत्यन्त खेदके साथ प्रकाशित करता हूं कि स्वामी दर्शनानन्द मी और पंडित गोपालदामजीके मौखिक शास्त्रार्थके दूसरे दिन श्रार्यसमाजी भाइयोंने कई प्रकारकी लाचारियां डालकर मुझसे ( जैन धर्म परित्याग ) शीर्षक विज्ञापन निकलवा दिया । परन्तु सोचने से नालूम हुआ कि किसी के दवावमें पढ़कर सत्यधर्मका परित्याग करनेसे श्रात्माका वास्तविक कल्याण नहीं हो सकता । इस लिये मैं सर्वसाधारण से निवेदन करता हूं कि मुझे भ पने पूर्व प्रकाशित विज्ञापनका बड़ा पश्चाताप है और अब मैं अपने पूर्व गृहीत और भूलसेत्यक्त सत्य जैनधर्मकी पुनः ग्रहण करता हूं । निवेदक दुर्गादत्त शर्मा अजमेर ११ । ७ । १२ क भाज रात्रिको जैनसभा अजमेर की भोरसे सभा का एक विशेष अधिवे शन करना निश्चित हुआ तदनुसार निम्न विज्ञापन प्रकाशित किया गया । : वन्दे जिनवरम् + आवश्यक सूचना | सर्व साधारण सज्जन महोदयों को विदित हो कि आज ता० ०११ जौलाई
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy