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________________ । (५२ ) लो इसपर हमारी ओरसे यह उत्तर मिला कि नियम तय कर लीजिये इम: अभी शास्त्रार्थ करनेको प्रस्तुत हैं पर विश्वास रहे कि हम लोग नियम वि. रुद्ध कोई कार्य कदापि नहीं कर सकते । पूर्व निश्चितानुसार बाहर स्वामी दर्शनानन्द जी का व्याख्यान प्रारम्भ हुआ और हम लोगों को बाहर चलकर । व्याख्यान सुनने को कहा गया पर हम लोगोंने साफ कह दिया कि हम लोग नियम तय करने आये हैं न कि व्याख्यान सुनने । हम लोगों को डराने के लिये पुलिस बुलाई गयी और उसने आते ही हम लोगोंसे पूछा कि श्राप लोग कब तक यहां ठहरेंगे । जबाब दिया गया कि जब तक शास्त्रार्थ के नियम न तय हो जाय या मार्यममाज हम लोगों को चले जानेको श्राज्ञा न दे। जब इन किन्हीं तुपायोंसे हम लोग हटते न दिखाई दिये तो वैरिष्टर साह. बने अन्त में प्राज्ञा दी कि "सभा वर्खास्त की जाती है अब आप लोग नि. कल जाइये। निदान प्रधान की प्राज्ञा शिरोधार्य कर हम लोग समाज मन्दिरसे अपने भार्यममाजी भाइयों से प्रेम पूर्वक “जय जिनेन्द्र" "जय जिनेन्द्र" कहते हुये उठ पाये और जयजयकार ध्वनिके मध्य अपने स्थानपर आ पहुंचे॥ चन्द्रवार ८ जलाई ११२ ईस्वी । श्राज आर्यसमाजकी ओरके निम्न दो ( उसकी कमजोरी और दोष छि. पाने वाले ) विज्ञापन प्राप्त हुये। ओ३म् । शास्त्रार्थसे कौन भगा। - जैसा कि हमारा अनुमान था पाखिर हमारे सरावगी भाइयोंने गुलगपाडे और वृथा हठसे शास्त्रार्थ को टाल ही दिया और इन ४ बातों में से एक भी बात मंजूर नहीं की। (१) यदि शास्त्रार्थके प्रबन्धका कायम रखने व हुल्लड़ रोकने के लिये टिकट द्वारा प्रबन्ध मंजर हो तो समाज ता०८ को ही शास्त्रार्थ का प्रबन्ध करनेके लिये तय्यार है। (२) यदि टिकट द्वारा नहीं चाहते और अंधाधुन्ध आदमियों की भीड़ करना मंजर हो तो अपनी जिम्मेवरीपर प्रबन्ध करें प्रार्यसमाजके लोग जहां प्राप कहेंगे शास्त्रार्थ सो चले आयेंगे । .. (३) यदि समाजको जिम्मेवरी पर ही जोर है जो ए तारीख़ को ममइ. यों के नोहरेमें कानगी प्रबन्ध द्वारा समाज शास्त्रार्थ कर सकता है ॥ -
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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