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________________ ( ४१ ) कि इस विषय में प्रकाशित यह निम्न शब्दों में से किन शब्दों से ऐसा अभिप्राय निकाला गया । "श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी समाने दोनों पक्षों की ओर से कहे हुए मौखिक शब्दों की रिपोर्ट पर जोकि दोनों ओरके रिपोर्टरोंने लिखी थी हस्ताक्षर करने से इम लिये इन्कार कर दिया था कि वहाँ के रिपोर्टर लोग ऐसे संक्षिप्त लिपि प्रणाली में चतुर नहीं ये जोकि कहे हुए शब्दों को अक्षर प्रत्यक्षर लिख सकें और एक भी अक्षर या शब्द चूक जाने से भाव अन्यथा हो जाता है। यदि समाज के प्रस्तावानुसार ही दोनों घोर के तीन तीन रिपोटरों में से प्रत्येक के लेख जांच करके हस्ताक्षर किये जाते तो शा वार्थका सारा समय इसी में नष्ट होजातः” । दशवां दोष हम लोगों के रटे हुये "ईश्वर इस सृष्टिका कर्ता नहीं है,, विषय में चालाकी करने का है। मालूम नहीं कि इस विषय में हमने कौन सी चालाकी की और प्राय्र्यसमाज यों टालम टूज़ करता हुआ कैसे सब विषयों में हम से शास्त्रार्थ करने को उद्यत है । ग्यारहवां दोष हम लोगों का बाबू मिटुनलाल जी बकील और एक दो दूसरे प्रतिष्ठित लोगों के विषय में मनघडन्त बातें लिखने और मिथ्या ख़बरें उठाने का है क्या समाज इस बात से इन्कार कर सकता है कि मौखिक शाखार्थके सम य स्वामी जी से बाबू मिट्टन लाल जी ने यह नहीं कहा था कि "महाराज पंडित जी के प्रश्न का उत्तर दीजिये, और उन्होंने वादगजकेसरी जी के हिस्से के पांच मिनिट धन्यवाद यादि देने के अर्थ मांग लिये थे ? नहीं नह नते कि हम लोगों ने किन प्रतिष्ठित पुरुषों के विषय में मिया ख़बरें हाय जिसपर उन्होंने हम लोगों को डाटा । मालूम नहीं कि हम लोग पण्डित दुर्गादत्त जो के विषय में क्या सेंचतान कर रहे हैं। क्या यह उनके विषय में पूर्व ही प्रकाशित निम्न बात मिश्र है "पं० दुर्गादत्त जी को पूर्व जैन उदेशक बतलाना सरासर लोगों की आंखों में धूल फेंकना है क्योंकि वह पहले आर्यसमाजी थे और उन्होंने समाज में ३ वर्ष तक उपदेशक का काम किया था । जब उनको समाज में शान्ति प्रासन हुई तब उन्होंने सिर्फ ३ महीने से जैन धर्म की शरण ग्रहण की थी जैसा कि जैन मित्रके ३ अप्रैल सन् १९९२ ई० के १२ वें में पृष्ठ १२ पर प्रकाशि त "मैंने जैनधर्म की शरण क्यों लो,, शीर्षक उनके लेख से प्रगट है। वह जैन धर्म के सिद्धान्तों को अच्छी तरह नहीं जानते थे पर उनका विचार जैन वि
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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