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________________ ( 39 ) समाजका यह लिखता काजी सभा में कईबार कई दिनों तक शास्त्रार्थ जारी रखने के लिए कहा था पर जैनियोंने शास्त्रार्थ करने से इनकार कर लिया नितान्त असत्य है क्योंकि जब शाखार्थके अन्त में वादिगज के परीजीके हिस्से के ५ मिनटमा जी ने मांग लिए थे और उ में उन्होंने सबको धन्यवाद दिया और श्रमतत्त्व मकाशिनी सभाको ओर से उसके मन्त्री चन्द्रसेन जी जैन वैद्य ने बेस ही किया और उसके बादमें सभापतिकी संक्षिप्त वक्तता होकर सभा समाप्त होते ही उठकर चले गये तब समाजका चैसा लिखना सर्वथा मिथ्या है । जब कि सिंहका छोटा सा बच्चा हो बड़े २ मदोन्मत्त हस्तियोंके मान भंग करने में समर्थ हो सकता है तो तीन वर्ष से ही स्थापित हमारी श्रीजैनतत्त्वप्रकार्शिनों सभा ३० वर्षके मोड़ या समाजको परास्त कर मान भंग करने में समर्थ हो तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ॥ 3: प्रार्थसमाजको विश्वास रखना चाहिये कि लौंडापन या लड़कपन उनके ताल्लुक नहीं हुआ करता बरन अक्ल के ताल्लुक हुआ करता है । किसका लौंडापन है यह कृत्योंसे पबलिकको स्वयं ही प्रगट है । FINA 0 छात्र जो प्रार्थसमाज किसी योग्य प्रतिष्ठित अजमेर निवासीकी भोर से शास्त्रार्थकी जिम्मेवारीका विज्ञापन प्रकाशित होनेपर शालार्थ करना चाहती है सो यह उसकी डूबते हुएको तिनकेकी ग्रस्थ लेने के समान निरर्थक है और इससे उसकी असमर्थता ही प्रगट होती है क्योंकि जब इस कुमारों के प्रबन्ध द्वारा ही श्रीजन कुमार सभा अजमेरका प्रथम वार्षिकोत्सव, प्रार्थसमाजका श्री जैन तत्वप्रकाशिनी सभा से तारीख ३० जनका मौखिक शास्त्रार्थं निविन और शान्ति पर्व समाप्त हो गया तो सब डरनेका कारण प्रगट करना सिर्फ टाल टून ही । विश्वास रहे कि जबतक प्रार्थसमाज लिखित शास्वार्थ न करले या शाखावेसे इन्कार न कर दे तबतक हम उसको उसके किसी भी बहाने या टालमटूलसे बोड़ने वाले नहीं हैं यदि प्रार्थनाको यह भय है कि श्रीजैनकुमार सभाशास्त्रार्थत्रा यथोचित प्रबन्ध नहीं कर सकती तो हम -अबकीवार आर्य समाजके मियत किये हुए स्यान, समय, विषय और प्रबन्ध में शास्त्रार्थ करनेको उद्यत हैं । परन्तु इन अपना बहुतसी समय: इस शास्वार्थकी इन्तजारी में नहीं नष्ट कर सकते छतः समाजको इस विज्ञापनके पाते STRAIN JEAN T 43 2
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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