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________________ C RILLADI गीदह कौन है और सिंह कीन है यह ठहरने तथा नागजानेके कृत्योंसे ही पलिक को स्वयं प्रगट है। .. समाज का यह लिखना कि उसने "मानकी मरम्मत- शीर्षक हमारे विज्ञापनको समग्र बातोंका उत्तर प्रकाशित कर दिया नितान्त ही मसत्य है क्योंकि उसके "अब हठधर्मी से काम नहीं चलेगा" शीर्षक विज्ञापन में ईश्वर की स्वाभाविक क्रिया में सृष्टि कर्तृत्व और प्रलय कर्वत्व के परस्पर विरोधी गुण के हमारे दिये हुये दूषण का कुछ भी समाधान नहीं है और म इस विज्ञापन में ही कुछ है । इससे भली भांति प्रगट होता है कि समाज के पास उसका उत्तर है ही नहीं। जब कि श्री जैन तत्व प्रकाशनी सभा अपने मामूली से मामूली शङ्का समाधानको भी लिखित प्रणाली से करती है जैसा कि समाजको उसके वि. नापनों और कार्रवाहियों से प्रगट होगा तो इतने बड़े भारी शाखाके विषयको वह कब मौखिक रख सकती थी। क्या समाज इस बात से इन्कार कर सकता है कि स्वामी जीने पाच पांच मिनट मौखिक शाखाके लिये नहीं रक्खे थे और जब उस ने उम की ही बात को स्वीकार कर लिया तो या इससे यह प्रगट नहीं है कि उनकी इच्छानुसार ही मौखिक शाला. च रक्सा गया था। निस्सन्देर श्रीजैन तत्व प्रकाशिनी समाने दोनों पक्षोंकी ओरसे कहे हुए मौखिक शब्दोंकी रिपोर्ट पर जी कि दोनों ओरके रिपोर्टरोंने लिखी थी हस्ताक्षर करनेसे इस लिये इन्कार कर दिया था कि वहां रि. पोर्टर लोग ऐसे संलिप्त लिपि.प्रणाली में चतर नहीं थे जो किक हुए शब्दों को पर प्रत्यार लिख सकें और सभी पाए या शब्द बनानेसे भाव अन्यथा हो जाता है। मदि समाज के प्रस्तावानुपारी दोनों मोरके तीन तीन रिपोर्टरों में से प्रत्येको लेखमांच करके हस्ताक्षर किये जाते तो शास्त्राका सार समय सीमें नष्ट होडावा। समाजको विश्वास रखमाझये कि परामित पुरुष कभी भी बिनमी का सामना करने के लिये मैदान में नहीं ठहर सकता किन्तु शीघ्रही भाग जाता है। विपी पुरुष ही पराजित पुरुषके अपनी पराजयसे इन्कार करने पर उसको पुत्र परास्त करने के लिये मैदान में मानेको ललकारता है। यदि समाजको इस बातका विश्वास है कि "ईश्वर इस सृष्टिका कर्ता नहीं : :
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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