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________________ अब हठधर्मीसे काम नहीं चलेगा। Bi a talee जिन निर्पक्ष विद्वानोंने परमों के शासार्थको सुना होगा, उनको, भली भांति प्रकट होगया होगा कि श्रीमान् स्वामी दर्शनानन्दजी महाराजके कई बार गुदी जदी दलीलें व अनेक प्रकार की मिसालें देकर ईश्वर कर्ता सिद्ध करने पर भी जैन पंडित गोपालदास जी अपनी कमजोरी प्रकट न होने देने व भोले भाले लोगों पर अपना प्रभाव डालने के लिये उछल ९ कद २ कर यही कहते रहे कि "मेरे प्रश्नका उत्तर नहीं मिला यह चाल इन्होंने पहिले से ही सोच ली थी इसी कारण वार २ कहने पर भी लेखबद्ध शाखासे इनकार किया, परन्तु सत्य छिपाये कब छिप सकता है ! यह तो चालवाजी के 9 पदै फाहकर भी प्रकट होजाता है। चुनांचे स्वामी की शान्तपत्ति और अखगड शास्त्रोक्त दलीलोंका प्रभाव अनेक प्रात्माओं पर पड़ा जो स्वामी जीके पास कर अपने संसय मिटाते रहे, इनमें से मुख्य पं० दुर्गादत्तजी पूर्व जैन उपदेशक हैं, जिन्होंने शुद्ध हदय से जैन धर्म को तिलांजलि देकर वैदिकधर्मकी शरण लेने का अपने भाप विज्ञापन दिया और दूसरे शंभुदत्तनी नामी महाशय ने भी जैनमत से अपनी घृणा प्रकट की, इससे घबराकर हमार जैनी भाइयोंने अपनी शर्म उतारने के लिये पंडित जी के शुद्ध भावों पर व्यर्थ लांछन लगाया, शायद उन्हों ने सब लोगों को बेवकूफ ही समक रक्खा है, परन्तु लोग भले प्रकार समझ गये हैं कि अगर परिडत जी ऐसे ही होते जैसा कि जैनी अब चिड़कर लिखते हैं तो काहे को जैन लोग एक दिन पहलेली विद्वत्ता का लम्बा चौड़ा विज्ञापन देते और सभा में बड़े जोर शोर से इनकी तारीफ करते । अब ज. ब इन्होंने जैनमत की पोल खोलदो तो खिसियाने होकर भार्यसमाज और पविडतजी पर झठे दोष लगाने लगे। मन्त्रीजी ! यदि पण्डित जी ने अपने व्याख्यान में (जो कि जनसभामें ३० जूनको हुवा था) वेदों की पोल ही खोली थी तो मापने व्याख्यान के बीच मैं काग़ज़के टुकड़े पर क्या लिखकर दिया था और उसके उत्तर में पण्डितजीके इन शब्दों का क्या प्राशय था कि "कि वेदों में निरी पोल ही पोल है जिसमें भाप सब समा जायेंने,, ।
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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