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________________ mune. .. " सर्वको बिना राग ही लाभ पहुंचाता है और हम लोग अपने कुटुम्ब प्रादि को माग भहित हो कर लाभ पहुंचाते हैं । " __चन्द्रसेन जैनवैद्य मन्त्री श्री जैनतत्त्व प्रकोशिनी सभा.. इटावा ।स्थान अजमेर ता०१।७ । १२ - - - प्रश्न और उत्तर सुनाये जाने के पश्चात् तिवारीजी की सभामें खोज कीगयी पर श्राप उपस्थित न थे इस कारण यह निश्चय हुआ कि उत्तर पत्र श्री जैन. कुमार सभाके मन्त्री वाबू घीसूलालजी अजमेराके पास रहे और वह उसको तिवारीजीसे मिलनेपर उनको देदें। इसके पश्चात् विद्यार्थी मक्खनलालजीने पण्डित दुर्गादत्तजीके उस व्याख्यानका खगहन किया जो कि उन्होंने मार्यसमाज भवन में तारीख १ जुलाईको रात्रिको दिया था। यद्यपि अपने व्या. ख्यान में पविडत दुर्गादत्तजीने जैनधर्मके खगडम और वेदोंके महत्त्व प्रदर्शन में कुछ नहीं कहा था-क्योंकि उनको यथार्थ में जैनधर्मपर अश्रद्धा और वेदोंपर श्रद्धा तो थी नहीं.-और जो कुछ उनको कहना पड़ा था वह सब ऊपरी भयसे सामान्य बातें थीं पर तो भी सर्व साधारसके भम निवार्य उसका खण्डन किया गया। सर्व सभाको इच्छानुसार न्यायाचार्य पण्डित माणिकचन्दगीने बड़ी योग्यतासे मूर्तिपूजन पर विवेचन किया और उसके पश्चात् कंवर दिग्विजयसिंहजीने प्रतिनिधि होकर श्रीजेनतत्वप्रकाशिनी सभाका सन्देशा श्री जै. मकुमार सभा अजमेरको सुनाया जिसमें कि अपने ज्ञान और चारित्रकी वद्धि करते हुए जैनकुमारोंको जैनधर्मकी सच्ची प्रभावना करनेका हृदयग्राही शब्दोंमें उपदेश था । वादिगज केसरीजीने कुंवर साहवका समर्थन करते हुए उ. पसंहार वक्तृता दी जिसमें कि जैनियों को बड़े जोर शोरसे जैनधर्म का प्रचार कर स्वपर कल्याण करनेका उपदेश था । अन्त धन्यवाद और बधाई प्रादि के भान होकर जैनधर्मको बड़ी प्रभावना के साथ जयजयकार ध्वनिसे सभा का उस्म समाप्त हुआ। सन्माको श्रीजीको रथयात्रा बड़े ठाट-बाट और धूमधामसे हुयी और इस प्रकार प्रोग्रामानुसार श्री जैनकुमार सभा अनमेरका प्रथम वार्षिकोत्सव बड़े भूमधाम और सपाहतासे समाप्त हुआ। मान सन्ध्याको प्रार्यसमाजकी ओरसे निम्न विज्ञापन प्रकाशित हुमा। .
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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