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________________ नानन्द्रजीने हमारे सृष्टिकर्तृत्वमीमांसा नामक ट्रेक्ट नं० १२ के प्रारम्भके कुछ भागको लेकर जैनमतसमीक्षा नामक पुस्तकमें विना समझे ऊटपटांग खं. डन किया है। अतः हम उपर्युक्त स्वामीजीको चेलेज देते हैं कि यदि आप को अपने संडनपर अभिमान हो तो आप इस विषयमें यहां अभी अजमेर में। ही ता०१ जुलाई सन् १९९२ ई० तक ( जब तक कि हम यहां ठहरेंगे) शा. त्रार्थ करलें। यदि आप ऐसा न करेंगे तो आपको असमर्थता समझी जावेगी। चन्द्रसेन जैन वैद्य मन्त्री श्री जैनतत्त्व प्रकाशिनी सभा इटावा । ता० २९ ६-१९९२ - -::--- उपर्युक्त कार्यवाहीके ,पश्चाद् प्राजको समाका कार्य मानन्द जय जयकार ध्वनिसे समाप्त हुआ। रविवार ३० जन ११२ ईस्वी। कल रातको जो दो चैलेज ( एक स्वामी दर्शनानन्द जी के चैलेजपर चै| लेज और दूसरा अपनी प्रोरसे स्वामी दर्शनानन्द जी को चैलेज) श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी सभाकी श्रोरसे स्वामी दर्शनानन्द जीको दिये गये थे उनके उत्तरमें आज प्रातःकाल ८॥ वजेके लगभग स्वामी जी की ओरसे निम्न विज्ञापन प्राप्त हुआ। ॥ श्म् ॥ ... जैनियोंका चैलेज मंजर। जैन सभाको विदित हो कि जहां कहीं वह बुलाया चाहे वहाँ मैं शाखार्थ करने के लिये तय्यार हूं। कृपा कर स्थान, समय, विषय और प्रबन्धके लिये मध्यस्थ नियत करके सूचना दे। ता०-३०-६-१२ दर्शनानन्द, प्रातःकाल के अजमेर स्वामीजी के इस विज्ञापन का निम्न लिखित उत्तर प्रर्यात ॥ वन्दे जिनवरम् ॥ शास्त्रार्थ की स्वीकारता पर हर्ष । सर्व-साधारण सक्लान: महोदयोंको विदित हो कि मार्यसमाजी स्वामी |
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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