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________________ द्रव होयगा कीजी । सुगुरु ।। २ ।। छेदी तन गांठ जिनवरकी। वहीं जद रक्तकी धारा । अनिल सम कोप करे देवी । नगर सब शून्य कर डारा ॥ सुगुरु ॥३॥ गइ जद वात सद्गुरुपे । पादानुलब्धिसे आये कराइ शान्तिविध पूजन । सकलजन देख हरखाये ॥ सुगुरु ॥ ४॥ बजा ढक वाद्य घरघरमें । सुहागन गीत मील गावै। वधाइ देरही गुरुकुंजीवों ।युग सहस दुनिया ॥ सुगुरु ॥ ५॥ गुरु झट लेश संघ आज्ञा । चले अति शीघ्रगामीसें। मुहुर्तपद स्थानपे आये । हुवे लयलीन स्वामीसें !। सुगुरु ॥ ६ ॥धरा पर जैनका डंका। बजा गुरु ककसूरिका। हजारों भूपसुरसवें । भाज्या मिथ्यात्व पूरिका ॥ सुगुरु ॥ ७॥ श्रवण करोदासकी विनती। परंपद आपो स्वामिजी चरन रज रोज में मागुं । ये ही सुभ अरजी नामीजी ॥ सुगुरु ॥ ८॥ - ___ ॥काव्यम् ॥ . सुवर्णपात्रसंस्थितैः प्रभाहतान्धकारकैः . सुवतिसाज्यदीपकैः प्रदर्शयामि ते पदम् ॥१॥ न ही श्री....दीपं निर्वपामि ते । स्वाहा । इति पञ्चमी दीपकपूजा समाप्ता. -
SR No.032023
Book TitleBruhat Puja Aur Laghu Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvandas Amarchand Salot
PublisherJograjji Chandmallji Vaid
Publication Year1916
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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