SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ . चर्चापत्र, -- ३७-आगे दलिचंद सुखराज लिखतेहै,-रायपसेणीसूत्रों परदेशीराजाका-और-ज्ञातासूत्रने धर्मरुचि-अगगारका-उदाहरणदेतेहो, मगर-वो-चरितानुवादहै,___ (जवाब.) जो-बात-मुताबिक विधिवादक है-वो-खास ! विधिवादहै, उसको चरितानुवादकहना गलतहै, जैसे-तीर्थकर-गणधरोने जिसजिस बातकाहुकम फरमायाहो-और-मुताबिकउसके किसीने बरतावकियावो-खासविधिवादहै, चरितानुवाद नही, चरितानुवाद उसकानामहै, जिसवातमें तीर्थकर-गणधरोंका हुकम-न-हो,-औरवो-कामकोइकरे इसलिखनेका मतलब यहहुवाकि-परदेशीराजाकाऔर-धर्मरुचि-अणगारका उदाहरण-मुताबिकविधिवादके है, चरितानुवादकीतरह, त्यागनेयोग्यनहीं,-समजसको-तो-समजलो, बात क्याहुइ ? बात यहहुइकि-इरादेधर्मके वचनसेशासनदेना, खासविधिवादहै, इसमेंकोइशकनहीं, हरेकजैनमुनि-जब-व्याख्यान-सभामें धर्मशास्त्रवाचना शुरुकरते है, तो यहनिचे दिखलायाहुवा-श्लोकजरुर बोलते है-.. अज्ञानतिमिरांधानां-ज्ञानांजनशलाकया, नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः-१ इसका माइना यहहुवाकि-अज्ञानरुपी-अंधकारसें अंधेवनेहुवे शख्शोके नेत्रोंमें जिनोने ज्ञानरुपी-शलाकासे-अंजनकिया-उसगुरु महाराजको नमस्कारहो, देखिये ! इसमें अझानतिमिरांधानां-औसापाठहै, इसकामलतब क्याहुवा ? सोचो ! (बयान-दीपकरखने के बारेमें,-) ३८-फिर दलिचंद सुखराज-बयानकरते है, दीपकरखनेकेबारेमें
SR No.032022
Book TitleKitab Charcha Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherDolatram Khubchand Sakin
Publication Year1917
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy