SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दलिचंद-सुखराजके लेखकाजवाब. . २५. - (जवाव.) मना लिखाहै,-तो-किसअपेक्षासे लिखाहै ? इसका खुलासा लिखिये ! शास्त्रकारोने हरेकबातमें अपेक्षारखी है,-विनाअपेक्षाके कोइवचन नही, और उसीकों समजना चतराइका काम है, दरअसल ! पांचइंद्रियोकी विषयपुष्टीकेलिये जैनमुनिकों अप्रशस्त भाषा नही बोलनाचाहिये इरादेधर्मरक्षाके-या-शिष्यकों विनय सिखलानेकेलिये वचनसशासन देना मनानही, देखो आवश्यकसूत्रमें क्या ! लिखाहै ? उसपर खयालकरो, (आवश्यकसूत्रके-अवलअध्ययनमें पाठहैकि,-) जह जच्च वाहलाणं-अस्साणं जणवएसु जायाणं, . सयमेव खलिग गहणं-अहवावि बलाभिउगेण, पुरिसझाएवि तहा-विणीय विणयंमि नथिअभियोगो, सेसंमि अभियोगो-जणवयजाए जहा आसे, । (टीका,) यथा जात्यवाहिकानामश्वानां जनपदेषु मगधेषु जातानां स्वयमेव खलिनस्य-कविकस्यग्रहणं अथवापि बलाभियोगेन तथा पुरुषजातपि पुरुषविशेषेपि विनीतविनये अभ्यस्तवैनेयिके नास्ति अभियोगः-शेषेविनयरहिते बलाभियोगो वर्तते, माइनाइसपाठका यहहैकि-जैसेजातिवान् घोडा-अपनीलगामकों खुदलेलेताहै,-तो-उसकेलिये बलाभियोग करना कोइजरुरतनही-जो घोडाखुद लगामको नहीं लेताहै, उसकोबलाभियोगकरके लगामपहनाइ जातीहै, इसीतरह विनयवानशिष्य अगरखुदसमजजाय-तो-ऊसको व वनसे शासनदेना कोइजरुरतनहीं,-जो-शिव्य विनयरहितहो-वो-वचनसे शासनदेनेके काबिल है, देखिये ! आवश्यकसूत्रकापाठ-जोकि-खास ! विधिवादकाहै, इसपर गौर किजिये ! शिष्यक विनयसिखलाना और न्यायरुपी अंकुशौरखना गुरुकाफर्ज है, इसीलिये वचनसे शासनदेना फरमाया,
SR No.032022
Book TitleKitab Charcha Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherDolatram Khubchand Sakin
Publication Year1917
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy