SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गंदा करदेता है ! इसी प्रकार यदि हम संपसे बद्ध होंगे तो कई प्रकारकी कुरीतिरूप कचवरको निकाल सुधारारूप सफाइको करसकेंगे ! वरना स्वयंही कचवर बनने जैसा हो जायगा! प्रस्ताव तेइसवां. (२३) । E आजकल कितनेक साधुलोग शिष्य बनानेके लिये देशकालके विरुद्ध वर्ताव करते हैं, जिससे जैनधर्मकी अवहीलना होनेके अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं. इसी प्रकार मुनिओंकोभी कभी २ अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं. इस लिये यह सम्मेलन इस प्रकार दीक्षा देकर शिष्य करनेकी पद्धतिको और इस प्रकार दीक्षा देनेवाले और लेनेवालेको अत्यन्त असन्तोषकी दृष्टिसे देखता है और यह मंडल प्रस्ताव करता है कि, अपने समुदायके साधुओंमेसे किसीको ऐसी खटपटमें नहीं पडना चाहिये. और जो कोई मुनि ऐसी खटपटमें पड़ेगा उसके लिये आचार्यजी महाराज सख्त विचार करेंगे. हस प्रस्तावके उपस्थित होनेपर मुनिश्री चतुरविजयजी महाराजने कहाथा कि, आजकल इस प्रकारकी दीक्षासे साधुओंकी हदसे ज्यादह निंदा होती सुननेमें आती है ! जिससे कितनेक जैन या जैनेतर लोकोंके मनमें साधुओंपर अप्रीति होती जाती है ! कितनीक जगह तो बिचारे श्रावकोंको सैंकड़ो बलकि हजारोंके खर्च में उतरना पड़ता है ! जो कि, साधुओंके लिये
SR No.032021
Book TitleMuni Sammelan 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sacheti
Publication Year1912
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy