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________________ ४४ डमे आकर काम बिगाड़ना योग्य है ! नीतिकारोंका कथन हैस्वार्थभ्रंशोहि मूर्खता-अपने मानमें तना स्वार्थका नाश करना, आला दर्जेकी मूर्खता है ! मानके करनेसे प्रीतिका नाश होता है. शास्त्रकारोंकाभी फरमान है कि,-माणो विणय-भंजणो-मानविनय नम्रता गुणको नाश करताहै ! जहां नम्रता नहीं वहां प्रीतिका क्या काम ? और विना प्रीतिके संपका तो नामही कहां? जब संप नहीं तो फिर बस ! कोई कैसाही उत्तम कार्य करना क्यों न चाहे कदापि सिद्ध होनेका संभव नहीं ! अतः संपकी अतीव आवश्यकता है. " संप त्यां झंप" इस गुजराती कहावतमें कितनी गंभीरता है उसका विचार कर अपने हृदय कमलसे कदापि इसको पृथक् नहीं होने देना चाहिये! दुनियाके लोग करामात करामात पुकारते हैं मगर मेरी समझमें-जमातही करामात है ! जमात ( समुदाय ) से अशक्य शक्य हो जाता है ! जरा ख्याल करिये ! कीड़ी कितना छोटा जानवर है; परंतु जमात मिलकर एक बडे भारी सांपको खींचनेकी ताकत पैदा करसके है ! तंतुमें वो सामर्थ्य नहीं परंतु तंतु समुदायसे हाथी बांधा जाता है. ! इसलिये संपरूप सूत्रसे सबको ग्रथित होनेकी जरूरत है. संपरूप सूत्रसे बंधे हुएभी इतना ख्याल अवश्य करना योग्य है कि, जैसे ' झाडू ' जब तक दोरीके बंधनमें होता है तबतकही कचवर ( कचरे )को निकाल सफाइके कामको कर सकता है. परंतु जब उसका बंधन छूट जाता है या तूट जाता है तो और कचवरका निकालना तो दूर रहा उलटा वो आपही कचवर बन मकानको
SR No.032021
Book TitleMuni Sammelan 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sacheti
Publication Year1912
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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