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________________ ७६ जाहिर उद्घोषणा नं० ३. द्धार " नामा ग्रंथमें अच्छी तरहसे खुलासा सहित लिखाहै। श्रीआत्मानंद जैन पुस्तक प्रचारक मंडल, रोशन मुहल्ला आगरा से मंगवाकर उस ग्रंथको पाठक गण अवश्य पढ़ें, बडा उपयोगीहै सब बातोंका खुलासा होजावेगा। और इस पंचमआरेमें २३ उदय होनेवालेहैं, याने-पंचमओरमें २३ वार जैनशासनकी विशेष प्रभावना होनेका लेखहै उसमें प्रथम उदयों श्रीसुधर्मस्वामी, रत्नप्रभ सूरिजी, भद्रवाहस्वामी वसंप्रतिराजाको प्रतिबोधनेवाले आर्यसुहस्तीसूरि तथा विक्रमादित्यराजाके प्रतियोधक सिद्धसेन दिवाकरसूरि और हरिभद्रसूरि आदि प्रभावक आचार्योंने जैन शासनकी बहुत प्रभावनाकी । और दूसरे उदयमें भीजिनेश्वरसूरिजी, अभयदेवसूरिजी, दादाजी जिनदत्तसूरिजी तथा १८ देशोंमें अमारी घोष णा करनेवाले कुमारपाल महाराजाको प्रतिबोधनेवाले हेमचन्द्राचार्य व महमद तुघलख बादशाहको प्रतिबोध करनेवाले जिनप्रभ सूरिजी आदि प्रभावक आचार्योंने महेश्वरी, अग्रवाल, ब्राह्मण, क्षत्रीय आदिको उपदेश देकर लाखो जैनीधावक बनाये, अनंत उपकार किये, बडी प्रभावना की इसलिये पूर्वाचार्योंसेही और उन्हींके वंश परंपराके साधुओसही राजा महाराजा-बादशाह-मंत्री-शेठ आदि बडों बड़ों के प्रतिबोधसे शासन प्रभावना पूर्वक जगतके उपकारके और जीवदया वगैरहके बडे २ धर्मकार्य हुएहैं, होतेहैं व आगे होवेंगे परंतु लुंका व लुंकाकी परंपराके अनुयायी ढूंढिय-तेरहापंथियोंने अन्य लोगोंको प्रतिबोधकर जैनसमाजकी वृद्धिकरनेके बदले जैनसमाजमें घर २ में, गांव में फुट डालकर दोपत करके कलेश-निंदा-विरोधभावसे हानिके सिवाय कुछभी लाभनहीं कियाहै इसलिये ढूंढिये लोग दयाके नामसे ऐसे परमोपकारी शुद्धसंयमी शासन प्रभावक पूर्वाचार्योंको भ्रष्टाचारीका झूठा कलंक लगानेका महान् पाप बांधकर भोले जीवोंको मिथ्यात्वमें डालकर बिचारे अपनामत फैलाते हुए संसार बढातेहैं। ८९. ढूंढिये लोग अपने धर्मकी महिमा बढानेके लिये लुकाको बड़ाधनाढ्य साहुकार व्रतधारी श्रावक मान बैठेहैं परंतुलुंकाजीके मातापिता-जन्मभूमिकेगांवकानाम,जाति-कुटुम्ब आदि किसी बातका कोई. भी प्रमाण नहींहै परंतु पुस्तक लिखनेवाले लिखारी लहीये ब्राह्मणाकी तरह लुकाजीभी लिखारीका धंधा करके अपनी रोजी चलाताथा यह बात प्रसिद्धहीहै. इसलिये किसी बातका प्रमाण बिनाही अपनी कल्पना पर ।
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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