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________________ ६२ . जाहिर उद्घोषणा नं०.३... स्थानककी ऊपरमें बतलायी हुई. सज्झायकी गाथाओंके अनुसार यदि कोई रात्रिमें आलस्य, भय या दस्तकी शुचिके लिये मात्राको इकट्ठा करके रक्खे तो उससे असंख्य संमूछिम पंचेंद्रीय मनुष्योंकी घात होनेका दोष लगे ॥१७॥ ___यदि कोई कहेगा कि रात्रिमें दस्त लगनेपर पत्थरके टुकडेसे या कपडेके टुकडेसे पूंछकर साफ कर लेवे तो अशुचि न रहेगी, यहभी अनुचितहै क्योंकि पत्थरके टुकडेसे कृमी आदिजीवोंकी हानिहोवे, कभी अंधेरेमें हाथ भरजावे, गुदाभी पूरी २साफ नहींहोती, विष्टालगी रहती है तथा पत्थरका टुकडा, काष्टका टुकडा, वांसकी शलाका आदि रात्रिके समय अंधेरे में लेनेसे त्रस-स्थावर जीवोंकी हानिहोवे और कभी सर्प, विच्छ वगैरह जहरी जीव काट खावे तो संयम विराधना व आत्म विराधना होजावे इत्यादि अनेक दोष आतेहैं इसलिये पत्थर काष्टादिसे पूंछकर साफ करना सर्वथा सूत्र विरुद्ध और लोक विरुद्ध भी है ॥१८॥ यदि कोई कहेगा कि हमलोग अल्प आहार करेंगे और शाम सवेर दोनों बार जंगल जाया करेंगे, उससे हमको रात्रिमें जंगल जानेकी व जल रखनेकी जरुरत नहीं पडेगी, यहभी अनसमजकी बातहै, क्योंकि हमेशा अल्प आहार करके संतोष रखने वाले सैकडे १-२ साधु साध्वी निकलेंगे किंतु सब अल्प आहार करनेवाले नहीं हैं, खूब गहरा पेट भरने वाले बहुतहैं। तथा शामको जंगलजानेकी आदतरखने वालोंको प्रतिलेखना करनेमें, गौचरी जानेमें, आहार करनेमें, पढने-गुणने में, स्वाध्याय-ध्यानादि धर्मकार्य करनेमें बाधा आतीहै, अंतराय पडतीहै, जिससे यह रीतिभी सर्वथा अनुचितहै । और वर्षा काल में शाम-सबर दोनों पार नियम पूर्वक जंगल जानेका नहीं बन सकता, कभी वषोंके कारणसे शामको जंगल नहीं जासके तो उसको रात्रि जंगल जानेकी बाधा अवश्य होगी, इसलिये हमेशाके लिये सर्व साधु-साध्वियोंको रात्रिम जल रखनेका निषेध करना व नहीं रखनेका हठ करना यह प्रत्यक्षही बडीभूल है ॥ १९॥ रात्रिमें सब साधु-साध्वियोंको बहुत बार पैशाब करना पडताहै, निशीथसूत्रके ऊपरमें बतलाये हुए पाठमें जंगल व पैशाब दोनोंकी शुचि करनेका लिखाहै, रात्रि जल नहीं रखनेवाले पैशाबकी शुचि नहीं करसकते, जान बुझकर हमेशा पैशाबकी अशुचि रखते हैं, और पहीरने के
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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