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________________ • जाहिर उद्घोषणा नं० ३. देखकर कभी कोई साधुका उडाह करे उससे लोगोंके कर्म बंधे ५ दूसरे साधुओं परभी अप्रीति होवे ६, सूर्यका उदयहोनेके समय गृहस्थोंके घरों में बहु, बैन, बैटी आदि सोते पडे होवे उस समय साधुको गृहस्थों के घरों में जानेकी मनाई है, तोभी दस्तकी हाजतसे जलके लिये लाचारी से ऐसे समय गृहस्थोंके घरोमें फिरना पडताह, ७, सूर्योदयके समय बहुत श्रावक-श्राविका सामायिक-प्रतिक्रमण आदि अपने २ नित्य कर्तव्यमें बैठे होवें, उस समय साधु घरमें आकर खाली जावे तो उन गृहस्थोंको देखो 'आज हमारे घरमें साधुजी आये परंतु जल मिला नहीं, खाली पीछे चलेगये' इत्यादि पश्चाताप करना पडताहै ८, सूर्योदय होतेही लोगोंने झाडु बुहारा भी निकाला न होवे, शुचि कर्ममें लगे होवें, गृहकार्य को हाथही लगाया नहीं होवे उस समय गृहस्थोंके घरों में जानेसे निर्दोष शुद्ध जल साधुको मिलना बडा मुश्किल होता है ९, चुल्हेपर रात्रिको रखाहुवा जल लेनेसे वह जल प्रायः कञ्चा सचित्त जल होताहै उसका खुलासा पहिले लिख आयाहूं; इसलिये रात्रिवासी चुल्हेपरका कच्चा जल लेनेका दोष आताहै १०, कोई भक श्राविका आदि सूर्य उदय होने पहिले जल्दी से अंधेरेमें धोवण वगैरह करके रख छोडे वह जल लेनेसे साधुको आघाकर्मी और स्थापना दोष लगताहै ११, जोरसे दस्तकी हाजत होनेपर फजर में प्रतिक्रमण, प्रतिलेखनादि कार्य चित्तकी अशांतिसे शुद्ध नहींहोसकते १२, कभीप्रहर भर या थोडीसी रात्रि जानेपर दस्त लगजावे तो संपूर्ण रात्रितक विष्टा लिप्त शरीर रहताहै, वस्त्र खराब होते हैं बडी विडबना होतीहै १३, कभी वर्षा चौमासेमें सूर्य उदय होतेही वर्षा शुरू होजावे तब गृहस्थोंके घरमें जलके लिये जाना कल्पे नहीं उधर दस्तकी जोरसे हाजत होवे तो बढी तकलीफ भोगनी पडतीहै १४, कभी वर्षाकालमें रात्रिको दस्तलग जावे सूर्योदय होतेही वर्षा वर्षने लगे, या १-२ रोजकी झरी लगजावे उस समय फजरमें गृहस्थोंके घर जाकर जल लाकर शुचि कर सकते नहीं और अशुचि रहनेसे प्रतिक्रमण-स्वाध्याय करना सूत्र के पानोंको छना, हाथमें लेने, व्याख्यान बांचना, गृहस्थाको व्रतपञ्चाक्खान करवाने वगैरहमें शास्त्रपाठका उच्चारण करना कल्पे नहीं १५ जिसपरभी यदि अशुचि शरीर होनेपरभी सूत्र वाक्य उच्चारण करे तो शानावर्णीय कर्म बांधे १६, और "पन्नवणा" सूत्रके प्रथमपदके पाठके अनुसार तथा १४
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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