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________________ जाहिर उद्घोषणा नं० २. ४५ योग्य है | यदि सच्ची दया पालन करना होतो दया पालनेके रोज उपवास वगैरह व्रत करो अथवा घरमैसे सुके खाखरे दही छाछ आदिका थोडासा सहारा लेकर रस त्याग व उणोदरी तपका लाभ लो, यह सच्ची दयाका पालन करते नहीं और जलेबी, घोलबडोंका रायता आदि अभक्ष खाकर भट्टीखानेका पाप ले करके भी दया समझ बैठे हैं, ढूंढियों में दया के नामसेभी हिंसाका पार नहीं, यही बडी अज्ञानता है । · 7 ३८. जब ढूंढियों के कोई साधु या साध्वी काल कर जाते हैं तब उसके मुर्देको १-२ रोजतक रख छोड़ते हैं, आसपास के गांव वालोंको पत्र या तारआदिले सूचनादेकर मुर्दे के दर्शनकेलिये लोगोंको बुलवाते हैं, मांडवी ( चकडोल) की बडी सजावट करके नगारे निसाण गाजेबाजे व नाईयों को बुलवा कर दिन दुप्रहरको दीवी (मसाले) जलाते हुए गीतगान करते हुए भजन मंडलीके साथ अग्निसंस्कार के लिये ले जाते हैं । · गये वर्ष पंजाब देशमें रावलपिंडीमें ढूंढियोंके साधुके मुर्देको दो रोज तक सजावट वाले कमरेमें रक्खाथा और बडे आडंबरसे जलानेको ले गयेथे फिर दो रोज बाद उसके फोटोकी खूब धामधुमके साथ स्वारी निकालीथी, यह बात उसी समय ढूंढियोंके वर्तमान पत्रोंमें व जैन, जैन बंधु आदिमेंभी प्रकट हुईथी तथा काठीयावाड़ में जेतपुर मोढवाडीमें मृत माणेकचंद ढूंढिया साधुके अग्निसंस्कारकी जगह निर्वाण मंदिर बनवाया है, दर्शनके लिये फोटो स्थापन किया है और वार्षिकं तिथिके रोज निर्वाण मंदिर के सामने बडा मंडप बनवाते हैं, ध्वजा-पताकाओंसे बडी शोभा करते हैं, नोबत नगारे बजवाते हैं, फोटोके दर्शनकर गुरु-गुण गातेहैं, यह बात अमदाबादसे संवत् १९८२ पौषमहीने में "स्थानक वासी जैन" नामक खास ढूंढियोंके मासिक पत्रके पृष्ठ ३१ में प्रकट हुई है । औरभी लुधीयाना, रायकाट, अंबाला, बर्नाला इत्यादि पंजाब, मारवाड, काठीयावाड आदि देशोंमें ढूंढिये साधुओंकी याद गिरीके लिये छत्री, घुमटी, निर्वाणमंदिर बने हुए मौजूद हैं तथा दर्शनके लिये चरण स्थापना व फोटोकी स्थापना की है । इस प्रकार राग द्वेष क्रोध मान माया लोभ आदि अनेक दोष वाले आठ कर्म सहित चारगति संसार में फिरने वाले और जिसकी गतिका ठिकाना नहीं उनकी भक्तिके लिये ऐसे २ हिंसा के कार्य ढूंढिये साधु अपने गुरुकी महिमा के लिये भक्तोंसे करवातेहैं और परम उपकारी अनंतगुण सहित आठकर्म रहित होकर मोक्षमें गये ऐस 1
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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