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________________ जाहिर उद्घोषणा नं० २. ३३ लेने को आते हैं, उसमें त्रस और स्थावर अनेक जीवोंकी हानि होती है; इस रिवाज का त्याग करके वायुकायकी दया पालने के लिये मुंहपत्ति बाधने वालों को किसी तरह की सूचना करवाये बिनाही विहार करके दूसरे गांव जाना योग्य है । ८. मगध, बंगाल वगैरह देशों में चावल, अंबाडी, आंब, तिल, यव इत्यादि वस्तु धोनेका प्रायः प्रत्येक घरमें प्रसिद्ध देशाचारहै, इसलिये सूत्रोंमें ऐसे निर्दोष धोवण साधुको लेनेकी आज्ञा है, वहभी कितनी देरका बना हुआ है इत्यादि पूछकर, वर्ण-रस- गंधकी परीक्षा करके वा थोडासा हाथमें लेकर चाखकर पूरा निर्णय करके पीछे लेनेका कहा है पूर्वधरादि दिव्यज्ञानी पूर्वाचार्यांने ऐसे धोवणको अचित्त हुए बाद अनुमान १ प्रहरका काल बतलाया है, बाद जीवोंकी उत्पत्ति होती है इसलिये उतने समयके अंदरमें वापरकर खलास करदेना चाहिये, बहुत देरका लेनेकी या ज्यादे रखनेकी मनाई है । ढूंढियोंको इस बातका पूरा ज्ञान नहींहै और गृहस्थोंके वासी पिंडा धोनेका या हांडे, कुंडे, लोटे, गलास आदि रात्रिवासी झूठे वर्तनोंको मांजनेका मैला पाणीको धोवण समझ कर लेते हैं, यह प्रायः सचित्त जल होताहै कभी ज्यादे राखोडीके कारण अचित्त होजावे तो भी दो घडी बाद पीछा सचित्त होजाताहै, उसमें अनंतकाय और फुंआरे आदि सजीव की उत्पत्ति होती है ऐसे जल ढूंढिये साधु लेकर शामतक रखते हैं, पीते हैं, उसमें कभी फुंआरे देखने में आते हैं, तब नदी, तलाव, कूप आदिके पासमें गीली जगहमें जाकर फैकते हैं, उससे परकाय शस्त्र होकर उन फुंआरोंके तथा गीली जगह के दोनों प्रकारके जीवोंका नाश होता है, किसी समय अन्य दर्शनी लोग देख लेते हैं तब बडी निंदा होती है, कर्म बंधनका व जैनशासनके उडाह होनेका हेतु बनता है. ऐसे कारण मारवाड आदिमें बहुतवार बन चुके हैं । और कोई २ ढूंढिये कभी २ कुम्हार आदिके घरका मट्टी गोबर का मैला पाणी लेते हैं, उससे भी शासनकी हिलना ( अवज्ञा ) होती है यह सब बातें सूत्र विरुद्धहैं, द्रव्य और भाव दोनों प्रकारकी हिंसा के हेतुहैं इसलिये ऐसे जल लेनेका त्याग करना योग्य है । ९. भगवती सूत्र में साधुको आहार पाणी तीन प्रहर तक रखने की आज्ञा दी है सो गरम जल, त्रिफलाका जल, वा छाछकी आस, काजी आदि जल की कारण वश उत्कृष्ट काल मर्यादा बतलायी है परंतु
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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