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________________ ३१ .. • जाहिर उद्घोषणा नं० २. (वायुकायकी दया पालन करनेके लिये मुंहपत्ति बांधने. वालोंको तथा दया २ का नाम रटने वालोंको नीचे लिखे प्रमाणे हिंसाके कार्य त्याग करने योग्यहैं) । १. ढूंढिये साधु लंबा ओघा रखते हैं, जिससे चलते समय नीचे लटकता रहता है, उससे समय २ वायुकाय के असंख्य जीवोंकी हानि होती है अतएव लंबा ओघा छोडकर संवेगी साधुओंकी तरह शास्त्र प्रमाणके अनुसार ३२ अंगुल प्रमाणे और चद्दरके अंदरढका हुआ रहसके वैसा छोटा ओघा रखना योग्य है। . . २. ढूंढिये ओढनेकी चद्दरको गांठ बांधते ह जिससे चलते समय सामनेकी हवा आनेले नावके पालकी तरह चद्दरमें हवा भर जाती है उससे पीठके पीछे ढोलकी तरह चद्दर उंची होजाती है, उसमें भी वायुकायके जीवोंकी हानि होती है अतएव गमारोंकी तरह चद्दरके गाती बांधना छोडकर संवेगीसाधुओंकी तरह खुली चद्दर ओढना योग्य है। ३. ढूंढिये साधु उपरसे मुंहपत्ति बांध लेतेहैं परंतु नीचे से खुली रखते है, जिससे हिलती रहती है, उसमें भी समय २ वायुकायकी हिंसा होती है अतएव यदि पूरी २ दया पालन करना होतो मुंहपत्तिको नीचेसे भी बांध लेना चाहिये या ऊपर मुजब अनेक दोष समझकर हमेशा बांधनेका त्याग करना याग्य है। ४. ढूंढिये साधुओंको बाजारमें व्याख्यान बांचनके लिये प्रत्येक मांव २ में कहीं २ तंबु सामीयाने खड़े किये जाते हैं, पाल वगैरह बांधे जाते हैं तथा चौमासेमें टीनकी चहरें डलवाकर छायाकी बैठक की जाती है और तपस्या के पुरके उत्सवपर खास मंडप बनवाकर ध्वजा पताकायें लगवाई जाती हैं, उसमें स्थंभ व खीली गाडने वगैरहमें पृथ्वी । कायकी, पाल, सामीयाना, ध्वजा, पताका आदिसे वायुकायकी और चौमासेमें अपकाय, नीलण फुलण आदि छ कायके अनंत जीवोंकी हिंसा होती है, यहभी त्याग करना योग्य है । यदि दूढिये साधु अपने भक्तोंको ऐसे हिंसाके कार्य करनेकी व आप उसमें जाकर बैठने की मनाई कर दे तो इस हिंसाका बचाव सहजमें हो सकता है। ५. ढूंढिये साधु अपनी शोभाके लिये भकोंकी मारफत चौमासी पत्रिका, क्षामणा पत्रिका, तपस्या के पुरकी पत्रिका छपवाने में और गांव
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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