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________________ संभाल रखने के बारे में निम्न बातों पर पूर्ण ध्यान देने की आवश्यकता है:(अ) किसी भी दीक्षार्थी भाई या बहन की दीक्षा लेने की भावना, उसकी वैराग्यवृत्ति, एवं तत् संबन्धी अन्य बातों की पूरी जांचपडताल करने पर वह व्यक्ति दीक्षा देनेके योग्य मालूम हो तभी उसे दीक्षा दी जाय। दीक्षा प्रशस्त स्थान में, जाहिर तौर पर, शुभ मुहूर्त में होनी चाहिये । और जिस गाँव में दीक्षा देनी हो उस गाँव के उपाश्रय के व्यवस्थापकों का सहकार प्राप्त कर के दीक्षा देनी चाहिये। और दीक्षार्थी के माता, पिता, भगिनी, भार्या आदि निकटके स्वजन-संबन्धियों की अनुमति प्राप्त करने के बाद दीक्षा देनी चाहिये; किन्तु अनुमति प्राप्त करने के लिए योग्य प्रयत्नों के बावजूद भी किसी हठाग्रह वश अनुमति न मिल सके तो, ऐसी अवस्था में, अपवादरूप में बिना अनुमति दीक्षा ली जा सकती है। दीक्षार्थी को, अपनी शक्ति के अनुसार, अपने वृद्ध माता-पिता, स्त्री और छोटे पुत्र-पुत्रियों के जीवननिर्वाह की व्यवस्था करनी चाहिये । दीक्षादाता को दीक्षार्थी में अठारह दोषों में से कोई दोष न हो इस बातका खयाल होना चाहिये; और पदस्थ, बुजुर्ग या गुरु इन तीनों में से किसी एक को पूछे बिना दीक्षा नहीं देनी चाहिये। (आ) एक साधुमहाराज या साध्वीजी से एक बार दीक्षित हुआ व्यक्ति अन्य के पास दीक्षा लेने पहुंचे तो उन्होंने दीक्षा छोडने के कारण की तथा उस व्यक्ति की दीक्षा लेने की भावना के गुणदोषों की पर्याप्त जांच करने के बाद, एवं प्रथम दीक्षा देने वाले गुरु अथवा आर्या से पूछकर, उसे दीक्षा देनी चाहिये । तात्पर्य यह है कि दीक्षा एक धर्मसाधना का अमूल्य साधन बना रहे एवं भागवती दीक्षा का गौरव पूरी तरह सुरक्षित रहे, इसी ढंग से दीक्षा दी जाय ।
SR No.032018
Book TitleShwetambar Murtipuja Sangh Sammelan Prastav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Jain Shwetambar Murtipujak Shree Sangh Samiti
PublisherAkhil Bharatiya Jain Shwetambar Murtipujak Shree Sangh Samiti
Publication Year1963
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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