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________________ परिच्छेद.] अबूकुमारका विवाहोत्सव-प्रमचर्यका निपमः ॥ सद्गुणोंवाली एकही स्त्री पुरुषको वश कर लेती है तो फिर हम आठोंसे 'जंबूकुमार' कैसे चपरके जासकता है ? जिस वक्त उसके सामने हमारे कठालोंकी दृष्टि होगी उस वक्त स्वयमेवही उसका दिल वर्षामें कर्कष भूमिके समान पिंगल जायगा । इस प्रकारके विचार करके अपने मनमें बड़ी खुशी होतीथीं परन्तु उन्हें यह खबर न थी कि जगज्जयी कामदेवको जीतनेके लिए यह एकही अद्वितीय वीर जन्मा है । विवाह मंडपमें लेजानेके लिए 'जंबूकुमार' को आभूषण वगैरह पहराने लगे, कोई गलेमें कंठा डालता है, कोई कानों में कुंडल और कोई सच्चे मोतियोंका हार उसके गलेमें पहनाते हैं, कोई स्त्री आकर वरराजाके केश सुधारती है और कोई स्त्री आकर चन्दनका विलेपन कर जाती है, अनेक स्त्रियां इस प्रकार 'वरराजा की शोभा बढ़ा रही हैं । 'जंबूकुमार' का. स्वाभाविकही रूप कामदेवका तिरस्कार करता था आभरण वगैरह पहरनेसे तो क्याही कहना था । 'जंबूकुमार' जिस वक्त विवाहके योग्य जामा पहर रहा था उस वक्त यह मालूम होता था मानो मकरध्वजको जीतनेके लिएही यह बक्तर पहर रहा है । 'जंबूकुमार' को विवाह मंडपमें लेजानेके लिए एक अच्छे सुन्दर घोड़ेपर चढ़ाया गया, एक आदमी 'जंबूकुमार' के सिरपर छत्र करता है पासमें बहुतसी स्त्रियां मंगल गीत गारही हैं । इस प्रकार अद्भुत शोभाको धारण करता हुआ 'जंबूकुमार' अपने सुसरेके घर विवाहमंडपमें जा पहुँचा । 'वरराजा' को आया हुआ देखकर एक सुहागन स्त्रीने शरीर धारी कामदेवके समान 'जंबूकुमार' को दधि आदि मंगल द्रव्योंसे अर्घ दिया तत्पश्चात् दरवाजेमें स्थापित किये हुवे अग्नि गर्भित 'शरावसंपुट' को अपने पाँवसे फोड़ कर 'जंबूकुमार' अति मनोहरताको धारण करनेवाले माव
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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