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________________ ६२ परिशिष्ट पर्व. पांचवाँ किसीका भी आधार नहीं, जो स्त्री मन, वचन, कायासे परपुरुषका त्याग करके सच्चे दिलसे अपने पतिकी सेवा करती है वही सीता सतीके समान पतिव्रता स्त्रीकी रेखाको प्राप्त करती है। कन्या ओंका दृढ़ निश्चय समझकर उनके पिताओंने 'ऋषभदत्त' श्रेष्ठिसे कह दिया कि तुम विवाहकी तैयारी कराओ हमें प्रथमकाही वचन प्रमाण है, यह कहकर कन्याओंके पिताओंने मिलकर एक 'निमितज्ञ' को बुलवाया और उससे कहा कि ऐसा मुहूर्त निकालो जो थोड़ेही दिनमें आता हो । कुछ सोच विचार करके 'नैमित्तिक' बोला भाई ! आजसे सातवें दिन लगनके लिए मुहूर्त ठीक आता है इससे नजीक और मालूम नहीं पड़ता । यह सुनकर कन्याओंके पिताओंने तथा 'ऋषभदत्त' ने बड़ी खुशीसे इस मुहूर्तको मंजूर कर लिया । 'समुद्रप्रिय' आदि आठोंही साहूकारोंने परस्पर मिलकर एक बड़ा भारी मंडप रचाया, उस मंडपकी रमणीयता दर्शक जनोंके चित्तको हरण करती थी मंडपके चारों ओर सच्चे मोतियोंके तोरण बँधे हुवे थे उन तोरणोंपर चाँदनी रातमें चंद्रमाकी किरणें पड़तीथीं उसवक्त यह मालूम होता था कि भावी चरम केवली 'जंबूकुमार' की भक्तिसे इस मंडपकी शोभा बढ़ानेके लिएही चन्द्रमाने मानो अपनी समस्त किरणोंको यहांपर स्थापन किया है । इधर 'जंबूकुमार' के मातापिताओंने अच्छा मुहूर्त देखकर विधिपूर्वक 'जंबूकुमार' को बटना मलना शुरु किया 'जंबूकुमार' बटनेसे पीतवरणवाला हुआ हुआ तपे हुवे सुवर्णके समान कान्तिको धारण करने लगा। उधर कन्याओंकी भी असूर्यपश्या राजपनियोंके समान हिफाजत होने लगी । आठोंही कन्यायें रूपलावण्यसे अप्सराओंके समान थीं अत एव उनके मनमें कुछ यह भी घमंड था कि अच्छे रूपलावण्य तथा
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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