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________________ परिच्छेद.] अन्तिम केवली जंबूस्वामी. ५५ हैं तथा धवल मंगल गाती हैं और कोई स्त्री आकर उसके घरके दरवाजेपर कुंकुमके थापे लगाती है। 'ऋषभदत्त' नेभी उसवक्त कल्याणके सूचक बाजे बजवाये और अर्थिजनों को मुँह माँगा दान देकर बड़े आडंबरसे जिनेश्वर देवकी पूजा रची। जिस समय अपनी पत्नी सहित 'ऋषभदत्त' गणधर भगवानको वन्दन करनेको गयाथा उस वक्त सिद्धपुत्रके पूछनेसे जंबूवृक्षका वरनन करते हुवे गणधर भगवान से ' धारिणी' ने पुत्रोत्पत्तिका प्रश्न किया था। अत एव 'ऋषभदत्त' श्रेष्ठिने पुत्रका नाम जंबूकुमार रक्खा । अब प्रतिदिन द्वितीयाके चंद्रमा के समान 'जंबूकुमार' वृद्धिको प्राप्त होने लगा। 'जंबूकुमार ' का ऐसा तो अद्भुतं रूप था कि उसके मातापिता उसको देखकर खुशी के मारे अन्य कार्यों को भी भूल जाते थे । 'जंबूकुमार' अपने मातापिताकी आशालता के लिए वृक्षके समान क्रमसे योवन अवस्थाको प्राप्त हुआ ।
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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