SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ परिशिष्ट पर्व. [ तीसरा तपस्या करते हुवे बारह वर्ष व्यतीत हो गये परंतु मोहके वश होकर उसके मातापिताने उसे गुरुमहाराजके पास जानेकी आज्ञा न दी । आयुके पूर्ण होनेपर महातपस्वी 'शिवकुमार' काल करके ब्रह्मलोक नामा देवलोकमें महान् द्युतिवाला 'विद्युन्माली' नामा देव यह इन्द्रके समान ऋद्धिवाला हुआ है । और इस पुण्यात्माकी अभी तकभी पूर्वोक्त कारणसे वह कान्तिक्षीण नहीं हुई । आजसे सातवें दिन इस देवका जीव इसी नगरमें 'ऋषभदत्त' श्रेष्ठिके घर अन्तिम केवली जंबुनामा पुत्रपने उत्पन्न होगा | भगवान महावीरस्वामी के ऐसा कहनेपर 'विद्युन्माली " देव समवसरण से उठकर गगनमार्गसे देवलोक में चला गया । ' विद्युन्माली देव' के चले जानेपर उसकी चार देवियां जो प्रथमसे समवसरण में बैठीथीं उन्होंने हाथ जोड़कर भगवानसे पूछा कि हे भगवन् ! हमारे पति इस 'विद्युन्माली' देवका हमें कभी कहीं फिरभी समागम होगा या नहीं ? यह सुनकर भगवान बोले इसी नगर में 'समुद्र' प्रियसमुद्र, ' ' कुबेर' और 'सागर' ये चार श्रेष्ठी रहते हैं उन चारोंके घर तुम पुत्रीपने जन्म लोगी, वहां तुमारा इस लघुकर्मीके साथ समागम होगा, यों कहकर सुरासुरोंसे सेवित हैं चरणारविन्द जिनके और भव्यारविन्दोंको प्रमुदित करनेमें सूर्यके समान कृपासमुद्र भगवान श्री महावीरस्वामी अन्यत्र विहार कर गये । भोस
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy