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________________ ८ परिशिष्ट पर्व. [पहला " नामके नगरमें- सौम्यतासे चंद्रमाके समान और न्यायवानोंमें 'रामचंद्रके समान "सोमचंद्र " नामका राजा राज्य करता था और शीलादि गुणोंको धारण करनेवाली “ धारणी " नामकी उसकी प्रिया थी. एक दिन राजा " सोमचंद्र " और उसकी रानी "धारणी" दोनोंही गवाक्षमें बैठे थे "धारणी" अपने प्राणेशके मस्तकमें 'एक सुफ़ेद बाल देखकर बोली कि हे स्वामिन्! दूत आगया । राजा सोमचंद्र चकित हो चारों तर्फ देखने लगा और नजर न आनेसे बोला कि हे प्रिये कहाँ है? मुझे नहीं देख पड़ता, रानीने राजाके सिरमेंसे वह श्वेत वाल उखाड़ कर राजाके सामने रख दिया. और बोली कि स्वामिन् युवावस्थाको नष्ट करनेवाले यह यमराजाका दूत आया है और कोई नहीं, योवनको घात करने में शस्त्रके समान उस श्वेत बालको देखकर राजा मनमें खेद करने लगा । राजाका उदास चित्त देखकर " धारणी " रानी मुस्कराकर बोली स्वामिन् एक बाल देखकर ही बुढ़ापेसे डरने लगे यदि आपको शरम आती हो तो मैं नगर में ढिंढोरा पिटाकर निषेध करा दूंगी कि राजाको कोईभी आदमी बुड्ढा न कहे. यह सुनकर राजा सोमचंद्र बोला कि प्रिये मैं इस बालको देखकर खेद नहीं करता किन्तु इसका कारण यह है कि मेरे पूर्वजोंने तो अपने सिरमें श्वेत बाल आने से पहलेही व्रतग्रहण कर लिया था, याने दूसरी अवस्थामेंही व्रत अंगीकार कर लिया और मैं तो श्वेत कैश होनेपरभी विषयोंमें आसक्त हूँ, खैर अब अवश्यही इस "असार संसारको त्याग कर संन्यस्त ग्रहण करूंगा परंतु दूध पीमेवाले इस बालक पुत्रको किसतरह राज्यभार दूँ, अथवा व्रतंकी "इच्छावाले मुझको पुत्रसे और राज्यसे क्या कार्य है तू आपही !
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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