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________________ परिच्छेद.] तीन मित्र. १५३ दे दिया तो उस बिचारेको कभी मैंने याद भी नहीं किया, इस लिए वहां कुछ सहायता मिले यह तो असंभव है अथवा इन विकल्पोंसे सरा चलकर देखूं तो सही शायद कुछ बन जाय, दुनियां में परोपकारी मनुष्य भी बहुत पड़े हैं। यह विचारकर 'सोमदत्त' ' प्रणाममित्र' के घर गया । ' प्रणाममित्र ' ' सोमदत्त' को आता हुआ देखकर हाथ जोड़के खड़ा होगया और प्रीति - पूर्वक सन्मान देकर उसे अपने पास बैठाया। 'सोमदत' का चेहरा उदास देख ' प्रणाममित्र' बोला- भाई 'सोमदत्त !' कुशल तो है ? आप इतने क्यों घबराये हुये हैं ? और किस हेतुसे आज मेरे मकानको पावन किया ? यदि मेरे लायक कुछ कार्य हो तो फरमाइये । ' प्रणाममित्र' के इस प्रकार वचन सुनकर 'सोमदत्त' के हृदयमें कुछ शान्ति हुई । 'सोमदत्त' ने राजाका वृत्तान्त ' प्रणाममित्र' से कह सुनाया और कहा - हे मित्र ! अब मैं इस राजाकी सीमाको त्यागना चाहता हूँ । इस लिए आप मेहेरबानी करके मेरी सहायता करें, मैंने आपका कभी कुछ भी भला नहीं किया तथापि आप परोपकारी हैं, अत एव मैं आशा रखता हूँ कि आप मेरे सहायक होंगे । ' प्रणाममित्र' बोला- भाई सोमदत्त ! बेशक तुमने मेरे ऊपर ऐसा कोई महान् उपकार नहीं किया तथापि मैं थोडीसी मित्रतासे भी आपका ऋणी हूँ, अब आपकी सहायता करके अनृणी होऊंगा । आप बिलकुल मत डरो, जब तक मेरा दममें दम है तब तक आपका कोई बाल बाँका नहीं कर सकता । यह कह कर ' प्रणाममित्र ' ने अपने धनुष बाण चढ़ा लिया और 'सोमदस ' से बोला- चलो आप मेरे आगे आगे होजाओ मैं आपको ऐसे स्थानपे पहुँचा देता हूँ जहांपर राजा कुछ भी आपका अभिष्ट 20
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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