SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद.] शंखधमक, वानर और शिद्धि बुद्धि. १२७ चरती रहीं, जब पौ फटनेका समय हुआ तब धीरे धीरे चरती हुई सारीही गायें उस 'कृषक' के खेतमें आ बड़ीं, जब 'कृषक' उन गायोंको अपने खेतसे निकालने लगा तब वहांपर देखनेसे कोसों तक भी कोई मनुष्य न देख पड़ा । अत एव उसने सोचा कि निःसंदेह इन गायोंको कोई चोर मेरे 'शंख' के शब्दके भयसेही छोड़ गये हैं। उन गायोंको लेकर 'कृषक' अपने गाँवमें गया और सब 'किसानों को बुलाकर कहने लगा देखो भाइयो ! मेरे ऊपर एक देवता प्रसन्न हुआ है और उसने मुझे ये गायें दी हैं, मैं इन गायोंको तुम्हें समर्पण करता हूँ। यह कहकर उस 'कृषक' ने वे गायें गाँववालोंको देदीं । गाँववालोंने 'कृषक' की बात सत्यही समझी, इस लिए वे उस दिनसे 'कृषक' को गाँवके यक्षके समान मानने लगे और गाँवके सब लोग उसकी सेवाभक्ति करने लगे। 'कृषक' भी उस दिनसे लोभमें आकर अपने खेतमें जाकर रातभर 'शंख' बजाने लगा, दैवयोग एक दिन फिर वेही चोर पूर्ववत किसी एक गाँवसे गायें चुराकर उसी रास्तेसे आरहे थे, 'कृषक' के शंखका शब्द सुनकर परस्पर विचारने लगे कि इस शंखका शब्द पहले भी यहांही सुना था और आज भी यह शंख यहांही बज रहा है, इस लिए इससे यह मालूम होता कि यहां कोई खेत होगा और उस खेतका रखवाला यह शंख बजाता है, हम पहले नाहकही ठगे गये जो इस शंखके शब्दके भयसे इतनी सारी गायें छोड़के भाग गये । यह विचारके पश्चात्तापपूर्वक हाथ घसने लगे, वे सबके सब चोर ईंट पत्थर उठाकर शंखके शब्दके अनुसार चल पड़े, थोड़ी देरमें 'कृषक' के खेतमें जापहुँचे और टाँडपर बैठे हुए उस शंख बजानेवाले 'कृषक' को देखा।
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy