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________________ परिच्छेद.] नूपुर पंडिता. राजपत्नी बोली-जब प्रातःकाल नगरके लोग तुझे पकड़नेको आयँगे तब मैं तुझे अपना पति बतला दूंगी और कहूँगी कि हम दो जने मुसाफर हैं, रात पड़ जानेपर यहां सोरहे थे। यदि यह तीसरा चोर हो तो बेशक इसे पकड़ लो । चोरने यह सुनकर विचारा कि बेशक यह मुझे बचा सकेगी । अत एव उसने उसका कहना मंजूर कर लिया और उसी वक्त उसके हृदयकी तप्त बुझाई । प्रातःकाल होनेपर गाँवके सुभटोंने शस्त्र हाथमें लिये हुवे जिस मठको घेरा हुआ था उसका दरवाजा खुलवाकर क्रोधसे कुछ भ्रिकुटी चढ़ाकर उन तीनोंसे पूछा कि सच बताओ तुमारेमें चोर कौन है ? । यह सुनकर राजपनी उस चोरकी ओर हाथ उठाकर बोली-भाई! ये तो मेरा पति हैं हम दोनों मुसाफर रास्तेमें दिन अस्त होनेपर इस मठमें सोरहे । हमें क्या मालूम था कि सुबह ऐसी नौवत बीतेगी । यह सुन नगरके सुभटोंने विचारा कि जिसे यह अपना पति बताती है इसके चिन्ह चक्र तो चोरकेसे मालूम होते हैं मगर चोरके घरमें अप्सराके समान रूपवाली और वखाभरणोंसे विभूषित ऐसी स्त्री कहांसे होसके ?। अवश्य यह कोई राजकन्या अथवा किसी बड़े घरानेवाले शेठ साहूकारकी पुत्री है, क्योंकि इसकी आकृतिही कह रही है कि यह चोरकी पत्नी नहीं, भला जिसके वस्त्र और आभरण इस प्रकारके हैं क्या उसका पति चोरीसे अपने जीवनको बिताता होगा? । यह विचार करके उन मुभटोंने उस स्त्री और असली चोरको छोड़ दिया और बिचारे निर्दोष हाथीवानको चोर समझकर पकड़ लिया । उस नगरमें घने दिनोंसे चोरी डुला करती थी नगरवासी लोग बड़े तंग होगये थे इस लिए राजाने उस चोरको मूलीका हुकम
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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