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________________ परिच्छेद.] नूपुर पंडिता. थी, हाथीवानने हाथीको सिखाया हुआ था वह रानीको देख कर उसे अपनी सूंडसे आईस्तासे उतार लेता था, उस दिन भी पूर्ववत उतार लिया । रानी बड़े हर्षसे हाथीवानके पास गई, हाथीवान 'रानी' को देख एकदम क्रुधित होगया और हाथीके बाँधनेकी संकलसे 'रानी' को मारा और कहने लगा-हरामजादी! आज इतनी देर लगाकर क्यों आई मैं कितनी देरसे यहां तेरी राह देख रहा हूँ। 'रानी' हाथ जोड़कर बोली-स्वामिन् ! देर लगनेमें मेरा कोई दोष नहीं, आज राजाने कोई नवीनही पहरेदार रक्खा है वह बहुत देरतक जागता रहा इस लिए मैं जलदी न आसकी, अब उसके सोजानेपर आई हूँ इस लिए देर लगी है वरना मैं अपने टैमको कभी न चूकती । जब इस प्रकार 'रानी' ने अपनी देरीका कारण सुनाया तब 'हाथीवान' का कोष दूर होगया और प्रसन्न होकर उसके साथ यथारुचि दुराचरण किया। रात्रिके पीछले पहरमें उस साहसी 'हाथीवान' ने 'रानी' को हाथी के सूंडद्वारा पूर्वोक्त रास्तेसे चढ़ा दिया, 'रानी' कुशलतासे अपने महलमें चली गई । सुवर्णकार 'देवदत्त' अपनी आँखोंसे यह सब चरित्र देख अपने मनमें बड़ा विस्मित हुआ और विचारने लगा, अहो ! असूर्यपस्या राजपत्नियोंकी भी इस प्रकार विडंबना होती है, तो फिर अन्य स्त्रियोंकी तो कभाही क्या, जो हमेशा रातदिन बाहर भीतर स्वतंत्रतासे विचरती । हैं उन नियोंका शील रक्षण किसतरह होसकता है ? । इसतरह अपने मनको समझानेपर 'देवदत्त' की सब चिन्ता दूर होगई । चिन्ता दूर होजानेपर 'देवदत्त' चार वातके सोगया उसे टेढ़ा होतेही ऐसी नींद अगई मानो ६ महीनेसे जानितही या । रारिके न्यतीत होनेपर सूर्यनारायण-अपनी सहन किरणोंके सहित
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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