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________________ १०८ परिशिष्ट पर्व. [आठवा. पने पुत्रकी पत्नी से पराजित हुवे हुवे 'देवदत्त' को रातदिन निद्रा नहीं आती और हमेशा इसी चिन्ता चितामें दहकता रहता है कि अहो ! स्त्रीचरित्र कैसे विचित्र हैं। आंखोंसे देखी हुई बातको भी असत्य सिद्ध कर दिया, जगतमें मुझे निर्दोषीको बदनाम करके और विचारे 'शोभन' यक्षको भी ठगकर अपने दुराचारको छिपाकर इस रॉडने मुफ्त में नूपुर पंडिताका खिताब ले लिया । 'देवदत्त' इस प्रकार के विचार में रातदिन मन रहता है, योगी पुरुष के समान 'देवदत्त' की निद्रा बिलकुल ही उड़ गई। 'देवदत्त' को निद्रा न आने की बात धीरे धीरे राजाके पास पहुँची, अत एव राजाने उसे योग्य नौकरी देकर अपने अन्तेरकी रक्षा करनेके लिये रख लिया । अब 'देवदत्त' पहरेदार बनकर राजाके अन्तेउरकी रक्षा करने लगा । जिस दिन 'देवदत्त' राजाके अन्तेउरमें पहरेदार बना था उसी दिन एक पहर रात जानेपर अन्तेउरमेंसे एक रानी निकली परन्तु पहरेदारको जागता हुआ देखकर पीछेही लौट गयी, थोड़ीसी देर के बाद फिर निकली और उसे जागता देख फिर पीछे लौट गयी, इस प्रकार बारंबार होनेपर 'देवदत्त' पहरेदारके मनमें शंका उत्पन्न हुई कि यदि यह स्त्री मुझे बैठा देखकर बारंबार पीछे लौट जाती है तो अवश्यही कुछ न कुछ कारण होना चाहिये परन्तु इस कारणको जानना भी चाहिये कि यह मेरे सोजानेपर क्या करना चाहती है । यह जाननेके लिए 'देवदत्त ' टेढ़ा होकर दंभकी निद्रासे लंबे लंबे घुरड़ाटे लेने लगा । रानी फिरसे बाहर निकली और उस नूतन पहरेदारको सोता देखके खुशी होती हुई ग वाक्षके दरवाजेपर आई । गवाक्षके दरवाजेके नीचे परली ओर 'राजवल्लभ' नामका हाथी खड़ा था उस हाथीवानके साथ रानी मिली हुई थी इस लिए वह रोज हाथीवानके पास जाया करती
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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