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________________ ९४ परिशिष्ट पर्व. [सातवाँ पड़ा ढोल बजानाही पड़ेगा । इस प्रकार अपनी पूर्व प्रियाके वचनको सुनकर वह वानर फिर नृत्य करने लगा, यह घटना देखकर राजाके मनमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि जो इस प्रकार 'मँदारी' की ताड़ना तर्जनायें करनेपर भी नहीं नाचा उस वानरको इस रानीने क्या मंत्र सुना दिया जिससे यह रोता हुआ बंद होगया और फिरसे नाचने लगा । राजाके पूछनेपर रानीने अपना पूर्व - त्तान्त सब कह सुनाया और राजा-रानी सुखसे समय बिताने लगे । इसलिए हे स्वामिन् ! आप भी प्राप्त हुवे विषय संबंधि मुखको त्यागके उस वानरके समान पश्चात्ताप करोगे । 'जंबूकुमार' बोला-हे पद्मश्री ! मैं अंगारकारकके समान विषयरूप पानीका प्यासा नहीं हूँ, किसी एक देशमें (कोयले करनेवाला) एक आदमी रहता था । एक दिन ग्रीष्मर्तुमें वह पीनेके लिए बहुत सारा पानी लेकर अङ्गार करनेके लिए एक बड़ी भयानक अटवीमें गया और वहां जाकर उसने बड़ी भारी भही चढ़ाई परन्तु ग्रीष्मतुके सूर्यका प्रचंड ताप पड़ता था और कुछ भट्ठीका ताप लगा इसलिए उसके शरीरमें दाह ज्वरके समान गरमीने प्रवेश कर दिया, प्यास लगनेसे उस पानीको पीना शुरु किया परन्तु प्यास और भी अधिक बढ़ती गई। धीरे धीरे सर्व पानी पीया गया परन्तु उसके शरीरमें ऐसा दाह घुस गया कि ज्यों ज्यों पानी पीया त्यों त्यों अधिकही प्यास लगती गई। पानी पासमें न रहनेसे वह बिचारा 'अंगारकारक' घबराने लगा क्योंकि वहां दूर दूर तक कहीं भी पानीका ठिकाना न था इस लिए प्याससे अत्यन्त तृषित होकर वहांसे भाग निकला । प्यासके मारे प्राण कंठमें आये हुवे हैं, शरीर ग्रीष्मर्तुके तापसे तपा हुआ है अत एव वह बोलनेसेभी असमर्थ हुआ है। इस
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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