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________________ परिच्छेद.] अठारा नाते. कर उसका रस निकालते हैं, उस रसको पकानेसे गुड बनता है। इस प्रकार गुडके माँडोंकी निष्पत्ति समझकर और वहांसेही गेहूँ तथा इक्षुका बीज लेकर शीघ्रही अपने घरपर आया और खेतमें जाकर कंगणीसे भरे हुवे खेतको काटने लगा। 'बक' की यह चेष्टा देखकर उसके पुत्र बोले हे तात! आप यह क्या अनुचित कार्य करने लगे अधकच्चे खेतको काटते हो दशपांच दिनमें पकजानेपर काटा जायगा तो परिपक होनेसे धान प्राप्त होसकेगा और इस वक्त काटनेसे तो यह घासके समान पशुओंकेही काम आवेगा, हमारी आजीवका बिलकुल भ्रष्ट होजायगी। 'वक' बोला हे पुत्रो! इस निरस कंगणी कोदासे अब मन उद्विघ्न होगया है इस लिए इसको काटके इस खेतमें इक्षु तथा गेहूँ बोऊँगा और उससे तुम्हें सुधाके समान भोजन कराऊँगा । - पुत्र बोले-हे तात ! अल्प दिनोंमेंही यह खेत पकनेवाला है इसलिए आप कृपा कर थोड़े दिन ठहर जाओ क्योंकि यह तो कंगणी प्राय पक्कीही हुई है केवल पाँच-सात रोजकीही देरी है। इस पक्की हुई खेतीका सत्यानाश करके 'इक्षु' तथा गेहूँकी आशा करनी यह तो ऐसी है कि जैसे गोदके बालकको छोड़कर पेटकेकी आशा करनी, किसने देखा है इक्षु और गेहूँ होयेंगे या नहीं परन्तु कंगणी तो प्रत्यक्षही पक्की हुई हाथसे जाती है, “इस प्रकार अनेक तरहसे समझाने परभी 'बक' ने अपने पुत्रोंका कहना कानपर न घरा और इक्षु तथा गेहूँके लोभमें आकर घासके समान उस कंगणीके खेतको सफम सफा करही डाला। वक' ने उस कंगणीको काटके खेतमें हल चलाकर उस खेतको ऐसा बना दिया जैसा कुस्ती लड़नेवालोंका अखाड़ा । अब खेतके समीपमें 'बक' ने एक कुवा खोदना शुरु किया, उस कुचेको खोदते
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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