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________________ [सातवाँ . ८६ परिशिष्ट पर्व. कर उससेही अपना गुजरान किया करता था, एक दिन वर्षा समय आनेपर 'बक' ने अपने खेतको साफ करके उसमें कंगनी-कोद्रा बो दिया, वर्षाका पानी वर्षनेपर कंगनी और कोद्रासे खेत एकदम लहलहा उठा और थोड़ेही दिनोंमें खेत सबजीसे ऐसा शोभने लगा कि मानो खेतकी भूमिने हरे वस्त्रकी साड़ी बहनी हो । इस प्रकार खेतकी शोभा देखकर 'बक' बड़ाही खुशी होता है। - एक दिन कृषक कुछ कार्यवश अपने स्वजनोंके गाँवमें गया, स्वजनोंने उसका बड़ा स्वागत किया और उसके खानेके लिए गुड डालकर मीठी रोटी पकवाई । गुडवाली मीठी रोटिये खाकर 'कृषक' बड़ाही प्रसन्न हुआ और उनसे कहने लगा भाई तुमारा जीवन तो बड़े आनन्दसे व्यतीत होता है, जो इस प्रकार सुधाके समान भोजन खानेमें आते हैं, हम तो हमेशा 'कंगणी तथा कोद्रा' खाकरही समय व्यतीत करते हैं, तुमारे भोजन सा देवताई भोजन तो हमने स्वममें भी कभी नहीं देखा । आज महा पुण्यके योगसे यह भोजन तुमारे यहां खानेको मिला है । भला यह तो बताओ यह सुधाके समान भोजन किस प्रकारसे बनता है ? और इसके बनानेकी वस्तुयें कहांपर मिलती हैं ? स्वजनोंने कहा, 'कुवे' के पानीसे खेतको सिंचित करके अन्य धान्योंके समान गेहूँ बोये जाते हैं और पकजानेपर अन्य खेतीकेही समान वेभी काट लिये जाते हैं उन गेहूँओंको चक्कीमें पिसवानेसे आटा होजाता है उस आटेसे इस प्रकारके माँड़े पकाये जाते हैं और जो इन माँड़ोंमें मिष्टांश है वह इस प्रकार बनता है, पूर्वोक्त प्रकारसे खेत साफ करके इक्षु (ईख) बोया जाता है और थोड़े थोड़े दिनोंमें अरघट्टद्वारा कुवेके पानीसे सिंचित किया जाता है, जब वह पूर्ण वृद्धिको प्राप्त होता है तब उसको काटके यंत्रमें पील
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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