SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोई निर्पक्ष होकर एक तरफ श्रीमान् उपाध्यायजीका बनाया रास और दूसरी तरफ ढूंढकजीका बनाया श्रीपाल चरित्र रख दोनोंका मिलान करेंगे तो यह ही ज्ञात होगा कि रासपरसे श्रीपाल चरित्र बनाया है जिस्में जहाँ मन्दिर मूर्ति और प्रभुपूजाका पाठ आया वहाँ तस्करवृत्ति करी है साथमें श्रीपालजीने इस और परभवमें उज्जमनाकर प्रभुपूजा करी थी वह भी उडादी है और केइ केइ शब्दोंका फारफेर भी कीया है जिसको सम्पूर्ण न लिख यह केवल तस्करवृत्तिका नमुनाही बताया है। ___ इस तस्करवृत्तिका नमूनामें हमने जो प्रचलीत ढूँढक शब्दका प्रयोग किया है इस्मे अगर ढूँढकोंको कुच्छ कटूक लगे तो वह अपना कोई दूसरा नाम प्रगट करे कि भविष्य के लिये दुसरा नाम लिखा जावे / और श्रीपाल चरित्र के विषय में हमने जो मूल ग्रन्थ के प्रमाण से समालोचना करी है जो कि हमारा खास कर्त्तव्य था उसपरभी हमारे ढूँढक भाइयोंको नाराजी हो तो उसका कारण ढूँढक चौथमल को ही समजना चाहिये कि उसने हमारे दीलको आघात पहुँचानेके लिये हमारे शास्त्रोंसे पाठ के पाठ उडा देने का तस्करपना किया है। . जैनियोंकि गांभिर्यताकि तरफ जरा ख्याल करिये कि “पथ प्रदर्शक" नामक आगरासे निकलनेवाला ढुंढकपत्रमें आज 1 वर्षसे जैनाचार्यों और जैन मुनियोंकि असभ्य शब्दोंमें निंदा छप रहा है जिस्मे आचार्य विजयनेमिसूरि कृपाचंद्रसूरि मुनि मणिसागरजी रामविजयजी, ज्ञानसुन्दरजी आदिके विषयमें तो न जाने लेखक पागलखानाके पिंजरासे ही नहीं छूट आया हो ? पर ढूंढकोको यह ख्याल
SR No.032009
Book TitleEk Prasiddh Vakta Ki Taskar Vrutti Ka Namuna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunsundarsuri
Publisher
Publication Year
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy