SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ गाथा समयसार जिसप्रकार कलई पर की नहीं है, कलई तो कलई ही है; उसीप्रकार संयत (पर का त्याग करनेवाला) पर का नहीं है, संयत तो संयत ही है। जिसप्रकार कलई पर की नहीं है, कलई तो कलई ही है; उसीप्रकार दर्शन (श्रद्धान) पर का नहीं है, दर्शन तो दर्शन ही है अर्थात् श्रद्धान तो श्रद्धान ही है। इसप्रकार ज्ञान, दर्शन और चारित्र के संदर्भ में निश्चयनय का कथन है और अब उस संबंध में संक्षेप से व्यवहारनय का कथन सुनो। जिसप्रकार कलई अपने स्वभाव से दीवाल आदि परद्रव्यों को सफेद करती है; उसीप्रकार ज्ञाता भी अपने स्वभाव से परद्रव्यों को जानता है। जिसप्रकार कलई अपने स्वभाव से दीवाल आदि परद्रव्यों को सफेद करती है; उसीप्रकार जीव अपने स्वभाव से परद्रव्यों को देखता है। जिसप्रकार कलई अपने स्वभाव से दीवाल आदि परद्रव्यों को सफेद करती है; उसीप्रकार ज्ञाता भी अपने स्वभाव से परद्रव्यों को त्यागता है। जिसप्रकार कलई अपने स्वभाव से दीवाल आदि परद्रव्यों को सफेद करती है; उसीप्रकार सम्यग्दृष्टि अपने स्वभाव से परद्रव्यों का श्रद्धान करता है। इसप्रकार ज्ञान, दर्शन और चारित्र में व्यवहारनय का निर्णय कहा है। अन्य पर्यायों में भी इसीप्रकार जानना चाहिए। (३६६ से ३७१) दसणणाणचरित्तं किंचि विणत्थि दुअचेदणे विसए। तम्हा किं घादयदे चेदयिदा तेसु विसएसु॥ दंसणणाणचरित्तं किंचि वि णत्थि दु अचेदणे कम्मे । तम्हा किं घादयदे चेदयिदा तम्हि कम्मम्हि ।। दसणणाणचरित्तं किंचि वि णत्थि दु अचेदणे काए। तम्हा किं घादयदे चेदयिदा तेसु काएसु॥
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy