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________________ उन पर एक भी मुर्ति नहीं रही । इन हथनियों के पीछे पूर्व की दीवार में दस ताक बने हैं जिनमें इन्हीं दस पुरुषों की स्त्रियों सहित पत्थर की खडी मूर्तियां बनी हैं । * इन सब के हाथों में पुष्प मालाएं हैं । वस्तुपाल के सिरपर पाषाण का छत्र भी है। प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री का नाम मूर्ति के नीचे खुदा हुआ है। अपने कुटुंब भर का इस प्रकार का स्मारक बनाने का काम यहां के किसी दुसरे पुरुषने नहीं किया। यह मंदिर शोभनदेव नाम के शिल्पने बनाया था। मुसलमानोंने इसको भी तोडाया [ अनुमानतः वि. सं. १३६६ (इ. स. १३०९) में अल्लाउदीन खिलजीने जालोर के चौहान राजा कान्हड देव पर चढाई की थी तब ] इस का जीर्णोद्धार पेथड [ पीडथः]. ने करवाया था । जीर्णोद्धार का लेख एक स्तंभपर खुदा है । परंतु इस में संवत नहीं दिया। इस मंदिर की पूजा आदि के लिये इसने वारठ प्रगणे का डवाणी गांव दिया जो अब डमाणो नामसे प्रसिद्ध है। वहां से मिले हुए वि. सं. १२९६ श्रावण सु. ५ के लेखमें उक्त मंदिर तेजपाल और उनकी स्त्री अनुपमा देवी के नामों का उल्लेख है। * पहिले ताक में चार मूर्तियां खडी हैं जिनमें १ श्राचार्य उदयसन की २ श्राचार्य विजयसेन की ३ चंडप की और ४ चंडपकी स्त्री चांपल देवी की है। उदयसन विजयसेन का शिष्य था. ये नागेंद्र गच्छ के साधु और वस्तुपाल के कुलगुरु थे. उक्त मंदिर की प्रतिष्ठा विजयसेन ने ही कराई थी।
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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