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________________ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) लेखककेलिये मुसीबत का सामना होगा, इसलिये आईदे खयाल रखे. और ऐसे लिखाणोसें परहेज करे, - ३४ प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ठ (१०) पर बयान है गृहस्थोंसें वैयावच्चकराना, साबुन कपडे धोना - नोकरसें भार उठवाना इत्यादि अनेक तरहकी शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणा शांतिविजयजीने करी. ( जवाब . ) जो जो जैनमुनि - ग्रंथवनवाते है - पंडित लोग-शाथ रहते है, मणोवंदपुस्तक उनके लिये बैलगाडीमें या रैलमें आतीजाती हैं, क्या ! मुनिलोग नही जानतेकि - ग्रंथबनाने के सबब ये - ये क्रिया होती है, जैनशास्त्रमें बयान है - कोइ कार्य करना, कोइकार्य दूसरे से करवाना-याउसकेलिये अनुमतिदेना - तीनो एक बराबर है, बतलाइये लेखकमहाशय ! इस कार्यकों उत्सर्गमार्ग कहना - या - अपवाद मार्ग : वातेंतो बडीबडी वनाते हो - मगर कुछ जैनशास्त्रकीभी मालूम है ? अगर आपको मालूम न- होतो- गुरुलोगो के पास जाकर दर्याफत किजिये. और दिलमें खयालकिजिये कैसा उमदाजवाब है जिसको पढकरतुमभी ताज्जुब करोगे, शांतिविजयजीने को शास्त्रविरुद्ध प्ररुपना नही कि, उनकी जितनीवातेहै शास्त्रसबुत हैं, गृहस्थोसे वैयावृत्यकरानेके बारेमें जवाब सुनिये, ! पंचा कसूत्र में बयान है कि श्रावक-मुनि की वैयावृत्य (यानी) खिदमतकरे, इस पंचाशकसूत्र हमारे सामने नहीं है, होतातो पाठभी यहां लिखदेते, सोचो ! कोइ मुनिमहाराज बीमार हालतमेंपडेहो और उसवख्त दूसरे मुनि उनके पास हाजिर न हो तो उसमुनिकी खिदमत श्रावक करे या- नही ! अगर कहाजाय न करेतो बतलानाचाहिये श्रावकोकों जैनशाखोमें श्रमणोपासक क्यों कहे, ? - साबुनसे कपडे धोने के बारेमें जवाबलिजिये, ! क्षारसे कपडा धोना जैनशास्त्रों में मुनिकेलिये हुकम है, और साबुन एक तरहका क्षार है, इसलिये साबुनसें कपडाधोनाभी खिलाफ
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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