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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) धर्महै, और यहभीवातहैकि-लेखकपुरुष उत्सर्गमार्गी ठहरे, मगरमालूम होगया लेखकका उत्सर्गमार्ग कौरीवाते बनानेवालेहै, और यहभी लेखकबतलावे शिथिलाचारी किसकों कहतेहै और कठिनाचारी किसको, ? और इसबातकोभी जाहिरकरेकि-अपवादमार्गका सहारा तुम लोगलेतेहो-या-नही ? कोरीबातें बनाना सबकोइ जानतेहै मगर उस मुताबिक चलनेवाले बहुतकम निकलेगे, इनसाफफरमाताहै जैसाव्यक्षेत्रकालभाव देखो उसमुजब बर्ताव कसे, बडीबडीवातें बनानेसेकोइकाफायदानही. ऍतो अपनेअपने खयालमें-हरकोइमुनि उत्कृष्टसंयमी बननाचाहतेहै. और यहसमझतेहैकि-हम-जैसीक्रिया करतेहै वैसी कोई नहीकरता. मगर विना शुद्धश्रद्धा और ज्ञानके क्रिया कोइ कामनही दे शकती, लेखकपुरुष लिखताहैकि-अपवादपदका बहाना लेकर बुरी बुरी प्रतिसेवना करतेहै उनके दिखलायेहुबे अपवादिकशास्त्रप्रमाणोकों देखकर भव्यप्राणीयोकों विस्मितहोना-नहीचाहिये,-जवाबमें मालूमहोजोकोइसाधु-अपनेश्रद्धानुरागीश्रावकोके शाथविहारकरे-उसको-उत्सर्ग मार्गगामी-कहना-या-अपवादमार्गी कहना ?-और-यहभी बतलावेकि-श्रावक-मकान किराये लेवे-और-उसमें जो-मुनि-रहे-यह उत्सर्गमार्गहै -या-अपवादमार्ग, ? अपवादका बहाना कोनलेताहै-और-अपवादिक शास्त्रके प्रमाणकौन बतलाताहै, इसपर लेखकपुरुष फिरगौरकरे, कोइ हजार चतुराइसैले मगर अकलमंदोकेसामने एकभीनही चलशकती, प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (१०) पर दलीलहै शांतिविजयजीने ऐसी प्ररुपणाकरी श्रावकहै-सो-साधुओंकों दुकानसे मिठाइ वगेरा तुलवाकर दिलवादेवेतो कुछदोष नही. (जवाव.) शांतिविजयजीने ऐसीप्ररुपना नहीकिइ, अगर लेखकके पास कोइसवतहो-तो-पेंश करे, विनासबुत ऐसालिखाणकरना
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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