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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (पाठ प्रवचनसारोडार गाथा (८०४) द्वार (१११)-) मुल्लजुअं पुणतिविहं-जहन्नयं माझमं च उक्कोस, जहन्नण अठारसगं-सयसहस्सं च उक्कोसं, (माइना.) कपडेका मौल शास्त्रोमें तीनतरहकाफरमाया, जधन्य-मध्यम उत्कृष्ट, जिसमें जघन्य अठारहरुपयेका और उत्कृष्ट, लाखरुपयेका कपडा रखना मुनिकों हुकमहै, अपने अपने लाभांतरायकमके दूरहोनेसें जिसकों जो चीज मीले उसपर दूसरोंकों नाराज होना फिजुलहै, जिसवातका हुकम शास्त्रोमें दर्जहै उसका इनकार कौनकरसकताहै, ? देखलो ! लाखरुपयेका रत्नकंबल रखना फरमाया तो-नव --या-अठारांहरुपयेके कंबलकी कौन गिनतीरही, ? विद्यासागरने सबुत प्रवचनसारोद्धारका देदिया जिसकी ताकातहो रद करे, रद तो क्या करेगें ? मंजूरकरना पडेगाकि-विद्यासागरका कहना ठीकहै, रैलसवारी में पश्चिमसे पूर्व समुद्रतक (४५) घंटेमें जानेकीबात जो लिखी जवाबमें मालूमहो धर्मकी तरक्कीके लिये इससेभी जलदी चलनेवाली ( रैलमें) बनपडेतो (३५) घंटमें जासकतेहै, पेस्तरके जमानेमें जब आकाश गामिनीविद्यामौजूदथी धर्मकी तरक्कीकोलिये मुनिलोग बजरीये उस विद्याके (१) घंटेमें हजारां कोश जातेथे, तो (४५) घंटेकी बात कौन गिनतीमं रही ? संयमीकहलानाभी मूर्छारहित बर्तावकरनेवालोकाकाम
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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