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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श. (जवाव.) कौनकहताहै रैलसवारीसें धर्मनिर्वाहित नहींहोसकता, अपना धर्म सबकों प्यारा होताहै, चाहे दुनियादार हो-या-साधु हो, अपना धर्म रखेगा चैन पायगा, रैलसवारीमें खानपान-न-करे और जहां उतरे वहां खानपान करे तो धर्मकैसे जासकताहै, ? धर्मरखनेवाले वडीबडी मुसीबतमेंभी अपना धर्म रखतेहै-तो रैलसवारीमें धर्मरखना कौनमुश्किलकीबातहै, ? चेडाराजाने-कौणिकराजाके सामने लडाइके वख्तभी अपनाधर्म नही छोडा था, पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१८) पर वयानहै शांतिविजयजी चाहे हम आंखपर चश्मा लगावे, स्वछतंबेजका प्रावरण ओढे, और रैलगाडीमें पेतालीसघंटोमें पश्चिमसमुद्रसे पूरवसमुद्रतक विहारकरडाले, और संयमी महाव्रती साधु कहलानेका होसिला पुरा करे-ये-दोनों बातें नही होसकती. ... (जवाब.) क्या नही होसकती ? बेशक ! इरादेधर्मके होसकतीहै. देखलो ! और आगे जरा इसइबारतकों पढलो, मालूमहोजायगाकि-संयमी-महाव्रतीकहलानेका होसला इसतरह पुराहोताहै, शांतिविजयजी जो चश्मालगातेहै धर्मऔर आत्मरक्षाकेलिये लगातेहै, जिसकी आंखोंमें कमरोशनीहो, शास्त्रके हर्फ-न-बचसकतेहो-ऐसेमुनि-चश्मा-न-लगाव और जीवोकी हिंसा उनसे होतीरहे क्या ! इसबातकों अछीसमझतेहो, ? जीवरक्षाकेलिये जैसे दूसरे उपकरणहै चश्मेभी एक तरहके उपकरणहै, स्वछतंबेजका प्रावरण औढतेहै सो इसकी जैनशास्रोमें कोइमुमानियतनहीं, देखलो ! लाखलाख रुपयोंके रत्नकंबल पेस्तरकेमुनिलोग रखतेथे प्रवचनसारोद्धारका हुकमहै और उसका यहां पाठ बतलातेहै देखलो, !
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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